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ऊना जिला के बाबा बड़भाग सिंह मैड़ी मेला मे दूर दराज से पहुंच रहे श्रद्धालु

Una Hola Mohalla: आस्था का प्रतीक ऊना ज़िला का बाबा बड़भाग सिंह मैड़ी मेला मे दूर दराज से श्रद्धालु पहुंच रहे है. यहां चरण गांग में स्नान कर दैहिक व दैवीय प्रकोपों से मुक्ति मिलती है   

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ऊना जिला के बाबा बड़भाग सिंह मैड़ी मेला मे दूर दराज से पहुंच रहे श्रद्धालु
Raj Rani|Updated: Mar 10, 2025, 05:24 PM IST
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Himachal Pradesh/राकेश माल्हि: उत्तर भारत के बाबा बड़भाग सिंह की तपोस्थली मैड़ी में लोगों की आस्था का प्रतीक सुप्रसिद्ध मैड़ी मेला/ होला मुहल्ला मेला इस वर्ष 7 मार्च से शुरु हुआ  है और यह 17 मार्च तक चलेगा. प्रेतात्माओं से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध इस मेले में लाखों की तादाद में बाहरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली इत्यादि से श्रद्धालु आते हैं. इस मेले से सम्बन्धित कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं.  

कहते हैं कि यह पवित्र स्थान सोढी संत बाबा वड़भाग सिंह (1716-1762) की तपोस्थली है. 300 वर्ष पूर्व बाबा राम सिंह के सुपुत्र संत बाबा वड़भाग सिंह करतारपुर पंजाब से आकर यहां बसे थे. अहमद शाह अब्दाली के 13वें हमले से क्षुब्ध हो कर बाबा जी को मजबूरन करतारपुर छोड़कर पहाड़ों की ओर जाना पड़ा. जब बाबा जी नैहरी गांव के समीप दर्शनी खड्ड के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अब्दाली की अफगान फौजें उनका पीछा करते हुए उनके काफी नजदीक आ गई हैं. 

इस पर बाबा जी ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए अफगान फौज को वापिस खदेड़ दिया. कहा जाता है कि उस समय मैड़ी गांव में दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी. यदि कोई व्यक्ति गलती से इस स्थान में प्रवेश करता, उसे प्रेतात्मा अपने कब्जे में लेकर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देकर प्रताड़ित करती थी या पागल व बीमार बनाकर अपने वश में कर लेती थी. इस स्थान पर बाबा बड़भाग सिंह जी ने घोर तपस्या की. 

प्रेतात्मा ने उन्हें भी तंग करके अपने वश में करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें वश में करने के लिए सफल नहीं हो पाईं. प्रेतात्मा द्वारा बार-बार बाबा जी की तपस्या को भंग व अवरूद्ध करने के परिणामस्वरुप बाबा जी व प्रेत आत्मा में जोरदार लड़ाई शुरु हो गई. इस भंयकर लड़ाई में बाबा जी ने प्रेतात्मा को हरा दिया और पिंजरे में कैद कर दिया. प्रेतात्मा द्वारा बाबा जी से स्वतंत्र करने की प्रार्थना की तब बाबा जी ने प्रेतात्मा को इस शर्त पर स्वतंत्र किया कि वह प्रेतात्माओं से ग्रसित लोगों का इलाज करे और पुनः तपस्या में लीन हो गए. 

मैड़ी से एक किलोमीटर दूर चरणगंगा है, जिसका भी अपना एक विशेष महत्व है. मान्यता है कि जब बाबा बड़भाग सिंह बाल्यकाल में ही अध्यात्म को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही सर्वोपरि मानते थे. एक दिन बाबाजी घूमते हुए मैड़ी गांव में स्थित दर्शनी खड्ड जिसे वर्तमान में चरणगंगा के नाम से जाना जाता है, वहां पहुंचे और यहां स्नान करने के उपरान्त मैड़ी में एक बैरी वृक्ष के नीचे अन्र्तध्यान हो गए. मैड़ी का यह स्थान बिल्कुल वीरान था, दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी. 

कहा जाता है कि इस क्षेत्र में नाहर सिंह नामक एक पिशाच का प्रभुत्व था तथा नाहर सिंह द्वारा बाबाजी को परेशान करने के बाबजूद भी बाबाजी ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की. एक दिन बाबाजी व नाहर सिंह का आमना-सामना हुआ तो अपनी घोर तपस्या के कारण नाहर सिंह को बैरी वृक्ष के नीचे पिंजरे में बंद कर लिया. नाहर सिंह ने स्वतन्त्र होने के लिए बाबाजी से प्रार्थना की. जिस पर बाबाजी ने उन्हें इस शर्त पर रिहा किया कि वह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार व प्रेतात्माओं से ग्रसित लोगों का उपचार कर ठीक करेंगे और साथ ही निसंतान लोगों को फलने-फूलने का आशीर्वाद देंगे. यह बैरी का पेड़ आज भी वहां मौजूद है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर माथा टेकते हैं. 

चरणगंगा के पानी को चमत्कारिक माना जाता है. मान्यता है कि यहां स्नान करने से हर प्रकार के चर्मरोग एवं दैविक रोगों का विनाश होता है. जहां पर मुख्य रूप से मानसिक रोगी चमत्कारिक ढंग से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं. होली के दिन यहां झंडा निशान साहिब चढ़ाया जाता है. इस गुरूद्वारे में अनेकों श्रद्धालु माथा टेकने के लिए समूचे उत्तर भारत-पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से आते हैं. श्रद्धालुओं की माने तो इस दरबार जहां पर सच्चे मन से जो भी मनोकामना मांगी जाती है बाबा जी अवश्य पूरी करते हैं. श्रद्धालु पिछले कई सालों से लगातार जब यह मेला लगता है तो यहां पर सेवा करने के लिए पहुंचते हैं. 

 

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