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Kangra Tea: 25 सालों में पहली बार कांगड़ा चाय का रिकॉर्ड तोड़ हुआ उत्पादन, जानें पूरी डिटेल

Dharamshala News in Hindi: कांगड़ा चाय का इस बार 11.67 लाख किलोग्राम उत्पादन रहा. साल 1997-98 में 17 लाख किलोग्राम उत्पादन हुआ था. 

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Kangra Tea: 25 सालों में पहली बार कांगड़ा चाय का रिकॉर्ड तोड़ हुआ उत्पादन, जानें पूरी डिटेल
Muskan Chaurasia|Updated: Feb 01, 2024, 04:00 PM IST
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Dharamshala News: 25 वर्ष में पहली बार कांगड़ा चाय का रिकॉर्ड उत्पादन प्राप्त हुआ है. इस बार वर्ष 2023 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 11,67,000 किलोग्राम रहा है, जबकि आमतौर पर कांगड़ा चाय का उत्पादन औसतन प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख किलोग्राम ही रहा करता था. गत वर्ष उत्पादन का आंकड़ा 9,88,000 किलोग्राम था.  इस वर्ष उत्पादन का आंकड़ा लगभग 12 लाख किलोग्राम को छू गया है, लेकिन इस साल 1997-98 में प्राप्त लगभग 17 लाख किलोग्राम के आंकड़े को छूना अभी भी कांगड़ा चाय के लिए एक चुनौती बना हुआ है.

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कांगड़ा चाय के लिए मार्च 2023 में यूरोपीय यूनियन का जी.आई.टैग प्राप्त हुआ. देश में दार्जिलिंग चाय के पश्चात यूरोपीय यूनियन का जी.आई. टैग प्राप्त करने वाली कांगड़ा चाय दूसरी चाय बनी है. ऐसे में इसे यूरोपीय यूनियन के देशों में कांगड़ा चाय के निर्यात को एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. वहीं प्रदेश सरकार ने भी पहली बार कांगड़ा चाय उद्योग के लिए सबसिडी जारी करने का निर्णय लिया तथा सरकार द्वारा पुरानी मशीनों को अनुदानित मूल्य पर चाय उत्पादकों  को उपलब्ध करवाने के लिए अनुदान बजट जारी किया. 

प्रदेश सरकार के इस पग से कांगड़ा चाय में श्रमिक समस्या के समाधान की आस बंधी है. 
इस बारे में जानकारी देते हुए चाय तकनीकी अधिकारी कृषि विभाग पालमपुर डॉ सुनील पटियाल, ने कहा कि इस सीजन (2023)में कांगड़ा चाय उत्पादन 11,67,000 कि.ग्रा. हुआ है, जो वर्ष 1997-98 में प्राप्त 17 लाख किलोग्राम चाय उत्पादन के पश्चात अब तक का सबसे अधिक उत्पादन है. 

सीजन के शुरू में ही मार्च-अप्रैल 2023 में अच्छी बारिश के कारण भी कांगड़ा चाय उत्पादन को नई संजीवनी प्राप्त हुई. चाय उत्पादन के लिए मौसमी परिस्थितियों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है. ऐसे में समय पर बारिश भी इसके अच्छे उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण कारक है. डॉ. सुनील पटियाल ने कहा कि कांगड़ा चाय के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध तथा इसराइल-हमास युद्धों के कारण चाय निर्यात में कमी आई, वहीं उत्पादकों को मांग की कमी के कारण अच्छे मूल्य भी प्राप्त नहीं हुए. 

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