Shimla News(अंकुश डोभाल): शिमला शहर में बंदरों की बढ़ती संख्या इंसानों के लिए बड़ा खतरा भी बन गई है. बंदरों ने आम लोगों के साथ जीना तो सीख लिया है, लेकिन उनकी इस दोस्ती की एक शर्त है- जंक फूड की जरूरत का पूरा होना. अगर यह ज़रूरत पूरी न हो, तो बंदर इंसानों पर ही हमला कर देते हैं. बंदरों को फल से ज्यादा आइसक्रीम, चिप्स कोल्ड ड्रिंक और चाइनीज फूड पसंद है. इसके लिए बंदर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाते हैं.
शिमला के लोग बंदरों के इस आतंक से परेशान हैं. वे बंदरों को भगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे फिर भी नहीं मानते. बंदरों का यह आतंक अब शिमला की सड़कों पर आम बात हो गई है. आलम यह है कि लोगों का आना जाना भी मुश्किल हो चला है. बंदरों के ज्यादातर हमले महिलाओं और बच्चों पर होते हैं.
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में बायोसाइंस की असोसिएट प्रोफ़ेसर मीना चौधरी का मानना है कि बंदरों का जंगल छोड़कर शहर में आना पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा दे रहा है. बीते कुछ सालों में बंदरों का इंसानी बस्ती में हस्तक्षेप बढ़ गया है. बंदरों को भी जंकफूड उतना ही नुक़सान करता है, जितना कि इंसान को. बंदरों में अचानक देखा जा रहा बढ़ता हुआ मोटापा भी इसी जंक फूड का नतीजा है. ज़रूरत है कि जंगलों में ऐसे फल वाले पौधे लगाए जाएं, जिससे बंदर जंगलों की तरफ़ भी जाएं. आए दिन बंदर आम लोगों को घायल कर देते हैं. यह चिंता का विषय बन गया है.
लंबे वक़्त से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे अपूर्व ठाकुर का मानना है कि बंदरों के शहर में बढ़ रहे हैं आतंक के पीछे भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह है. साल 2016 में बड़े स्तर पर नसबंदी कार्यक्रम चलाने की बात कही गई, लेकिन बावजूद इसके बंदरों की संख्या बढ़ती हुई नज़र आ रही है. कई बड़ी संस्थाएं भी इसे लेकर सवाल खड़े कर चुकी हैं. वे मानते हैं कि बंदरों के जंगल छोड़कर शहर में आने से पर्यावरण तंत्र पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है. इस संबंध में सरकार को काम करने की ज़रूरत है.