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Shri Jwalamukhi Mata Temple: अनंतकाल से प्रज्वलित ज्वालाएं, अकबर ने जिसे हिंदू घृणा के कारण बुझाने की कोशिश की; हुई थी हार

Jwala Devi Temple: 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है. बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे. वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं.

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Shri Jwalamukhi Mata Temple: अनंतकाल से प्रज्वलित ज्वालाएं, अकबर ने जिसे हिंदू घृणा के कारण बुझाने की कोशिश की; हुई थी हार
Raj Rani|Updated: Apr 01, 2025, 05:07 PM IST
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Dharamshala News(विपन कुमार): हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है. 

51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है. बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहे थे. वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं.

ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है. इसकी गिनती माता की प्रमुख शक्ति पीठों में होती है. ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी.

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए. लेकिन वे इस भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए कि यह आखिर इसके निकलने का कारण क्या है. वहीं इतिहास अकबर द ग्रेट ने भी इस ज्योत को बुझान की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा था.

यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था. बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया. यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की साझी आस्था है.

बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा. मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर उसके मन में शंका हुई. उसने ज्वालाओं को बुझाने के बाद नहर का निर्माण करवाया. उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए.

लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई. देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया. आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है.

 

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