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माता चिंतपूर्णी के चैत्र नवरात्र मेले में देश-विदेश से पहुंच रहे हैं श्रद्धालु; भक्तों की हर मनोकामना होती हैं पूरी

Una News: शक्तिपीठ माता चिंतपूर्णी के चैत्र नवरात्र मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मां चिंतपूर्णी भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं. पंडित माई दास को माता ने कन्या रूप में दिए दर्शन थे.  

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माता चिंतपूर्णी के चैत्र नवरात्र मेले में देश-विदेश से पहुंच रहे हैं श्रद्धालु; भक्तों की हर मनोकामना होती हैं पूरी
Sadhna Thapa|Updated: Mar 29, 2025, 05:32 PM IST
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Una News(राकेश मल्ही): चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है और यह लोगों की आस्था का केंद्र है. माता चिंतपूर्णी यहां पिंडी के रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो माता उसे उसके सभी कष्टों और समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं. यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर अपने खूबसूरत परिवेश और मनमोहक दृश्यों के लिए भी जाना जाता है.

पुजारी के अनुसार उनके पूर्वज पंडित माई दास को माता ने कन्या रूप में दर्शन दिए थे और तब से माता यहां पिंडी के रूप में विराजमान हैं. चिंतपूर्णी मंदिर में साल में तीन बार मेले लगते हैं, जिनमें सावन नवरात्रि, आशु नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के मेले शामिल हैं. चैत्र नवरात्रि के मेले में माता को तीन बार स्नान कराया जाता है और कन्या पूजन किया जाता है और नारियल की बलि भी दी जाती है. इन मेलों में लोग दूर-दूर से माता के दर्शन करने और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं.

शक्तिपीठ माता चिंतपूर्णी के दरबार में देश-विदेश से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं. श्रद्धालुओं के अनुसार वे कई वर्षों से माता के दरबार में आ रहे हैं. माता ने सुख-दुख में उनका साथ दिया है. उन्होंने माता से जो भी मुराद मांगी है, माता ने उनकी सभी मुरादें पूरी की हैं. मंदिर प्रशासन द्वारा की गई व्यवस्थाओं से श्रद्धालु काफी खुश नजर आए. मेले के चलते श्रद्धालुओं की भीड़ लगातार उमड़ रही है और श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए लाइनों में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते नजर आ रहे हैं.

अन्य शक्तिपीठ मंदिरों की तरह चिंतपूर्णी देवी की कहानी भी भगवान शिव की पत्नी देवी सती से जुड़ी है. यह उस समय की बात है जब देवी सती अपने पिता राजा प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में बिना बुलाए पहुंच गईं. उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया, लेकिन अपने दामाद शिव को अपमानित करने के लिए जानबूझकर उन्हें इसमें शामिल नहीं किया. अपने पिता के फैसले से आहत होकर सती ने अपने पिता से मिलने और उन्हें न बुलाने का कारण पूछने का फैसला किया.

जब वह दक्ष के महल में दाखिल हुई तो उसने शिव का अपमान किया. अपने पति के खिलाफ कुछ भी सहन करने में असमर्थ, देवी सती ने खुद को बलिदान की आग में झोंक दिया. जब शिव के सेवकों ने उन्हें उनकी पत्नी की मृत्यु की सूचना दी, तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने वीरभद्र को उत्पन्न किया. वीरभद्र ने दक्ष के महल में उत्पात मचाया और उसे मार डाला. इस बीच, अपनी प्रिय आत्मा की मृत्यु का शोक मनाते हुए, शिव ने सती के शरीर को कोमलता से पकड़ लिया और विनाश (तांडव) का नृत्य शुरू कर दिया. ब्रह्मांड को बचाने और शिव की विवेकशीलता को बहाल करने के लिए, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके सती के निर्जीव शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया. ये टुकड़े धरती पर कई स्थानों पर गिरे, जहां आज देवी के शक्तिपीठ स्थापित हैं. देवी सती के शरीर के उन 51 टुकड़ों में से एक इस स्थान पर गिरा, जहां आज प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता चिंतपूर्णी मंदिर स्थापित है.

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