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काठगढ़ के स्वयंभू शिवलिंग की अद्वितीय महिमा और इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान

Nurpur News: स्वयं भू प्रकट सुप्रसिद्ध प्राचीन काठगढ़ शिव मंदिर में आजकल भगतों का तांता लगा हुआ हैं. यहां शिवलिंग दो भागों में विभक्त है जिसके एक भाग को शिव तो दूसरे भाग को माँ पार्वती का रूप माना जाता है.  

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काठगढ़ के स्वयंभू शिवलिंग की अद्वितीय महिमा और इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान
Raj Rani|Updated: Mar 09, 2025, 02:01 PM IST
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Himachal Pradesh/भूषण शर्मा: स्वयं भू प्रकट सुप्रसिद्ध प्राचीन काठगढ़ शिव मंदिर में आजकल भगतों का तांता लगा हुआ है. जिला कांगड़ा के इंदौरा विधानसभा में स्थापित इस मन्दिर का अपना ही इतिहास है. यहां पर प्रकट शिवलिंग स्वयंभू प्रकट है और उससे से बड़ी विशेषता इस शिवलिंग कि यह है कि यह शिवलिंग दो भागों में विभक्त है जिसके एक भाग को शिव तो दूसरे भाग को मां पार्वती का रूप माना जाता है. 

मंदिर के पुजारी सुनील शास्त्री की माने तो इस शिवलिंग की दूरी ग्रह नक्षत्रों के हिसाब से घटती और बढती रहती है. उनके अनुसार जहाँ गर्मियों के मौसम में इन भागों में दूरी रहती है और सर्दियों में यह दूरी कम हो जाती है|वहीँ जिस दिन महाशिवरात्रि होती है उस इन दोनों पिंडियों के ऊपर के सिरे आपस में जुड़ जाते है. पुजारी की माने तो कोई भाग्यशाली ही उन क्षणों के दर्शन कर पाता है.

मंदिर के इतिहास के बारे में मंदिर पुजारी ने जानकारी देते हुए बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु के बीच आपस में श्रेष्ठ साबित करने के लिए युगों तक युद्ध चलता रहा तो उस समय इस युद्ध को समाप्त करने के लिए भगवान् शिव एक लिंग के रूप में प्रकट हुए और इस युद्ध को खत्म करवाया. वहीं उन्होंने भगवान् राम द्वारा भी इस शिवलिंग की ब्यास नदी के जल द्वारा पूजा अर्चना की बात कही|कहते है कि जब सिकंदर भारत पर हमला करने आया तो वो इस ब्यास नदी को पार नहीं कर पाया और यह शिव की महिमा थी कि उसे जहां से वापिस जाना पढ़ा.

वहीं मंदिर के इतिहास में एक अन्य दंतकथा के अनुसार महाराणा रणजीत भी अपनी सेना के साथ क्षेत्र में आये और इस शिवलिंग को जाने के लिए सेना को इसे उखाड़ने का आदेश दिया. काफी गहरी खुदाई करने के बाद भी इस शिवलिंग का अंत नहीं पा सके|जबकि इस जगह से निकलने वाले जहरीले कीड़ों के काटने से राजा की सेना खत्म होनी शुरू हो गयी|तभी राजा ने इस बारे में जानने के लिए साधुओं को बुलाया तो उन्होंने राजा को इस शिवलिंग की शक्ति के बारे में परिचित कराया. कहते है कि राजा रणजीत ने ही इस अष्टभुजी चबूतरे के रूप में इस मंदिर का निर्माण करवाया.

मंदिर कमेटी के सचिव सुरेन्द्र शर्मा ने बताया कि इस जगह पर कभी सुनसान जंगल हुआ करता था लेकिन धीरे धीरे इस मंदिर की महिमा और शक्ति के बारे में प्रचार प्रसार होने लगा|उनके अनुसार १९८४ में मंदिर की कमेटी का गठन हुआ और तब से लेकर लगातार मन्दिर का विकास हो रहा है. उनके अनुसार मंदिर कमेटी के सहयोग से कई समाजिक और धार्मिक कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वैसे तो प्रायः सैंकड़ों की संख्या में भक्तजन मंदिर में नतमस्तक होते है लेकिन महाशिवरात्रि अवसर पर तीन दिनों तक चलने वाले जिला स्तरीय इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आते है. जहां उनकी व्यवस्था का हर प्रबंध किया जाता है.

काठगढ़ के इस मंदिर में ना केवल प्रदेश से बल्कि बाहरी राज्यों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु भी इस मंदिर में आते है.

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