Jaya Ekadashi 2025: सभी हिंदू व्रतों में एकादशी का सबसे अधिक महत्व है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग सच्ची श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करते हैं वे सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं. भक्त न केवल सांसारिक सुखों का आनंद लेते हैं बल्कि मृत्यु के बाद स्वर्ग में भी स्थान प्राप्त करते हैं.
एक वर्ष में 24 एकादशी व्रत
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पूरे वर्ष में 24 एकादशी व्रत मनाए जाते हैं जिनमें से प्रत्येक का अपना अलग महत्व होता है. एकादशी महीने में दो बार आती है एक बार कृष्ण पक्ष (चंद्रमा का ढलता हुआ चरण) और एक बार शुक्ल पक्ष (चंद्रमा का बढ़ता हुआ चरण) के दौरान.
जया एकादशी का महत्व और लाभ
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी का महत्व बताया था. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से दरिद्रता दूर होती है. अकाल मृत्यु का भय दूर होता है, शत्रुओं का नाश होता है और समृद्धि, धन और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है.
एकादशी को सभी व्रतों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने में मदद करता है जिससे अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और ईश्वरीय आशीर्वाद मिलता है.
जया एकादशी 2025: तिथि और शुभ समय
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी 7 फरवरी 2025 को रात 9:26 बजे शुरू होगी और 8 फरवरी 2025 को रात 8:15 बजे समाप्त होगी. चूंकि यह व्रत उदया तिथि (सूर्योदय के समय की प्रधानता) के अनुसार मनाया जाता है, इसलिए यह व्रत 8 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा.
जया एकादशी पर शुभ योग:
इस साल जया एकादशी पर रवि योग, भद्रा वास और रात्रि में शिव योग का संयोग है.इसके अलावा मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्र का संयोग भी बेहद शुभ माना जाता है. इस अवसर पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
जया एकादशी पर पालन करने योग्य अनुष्ठान
-सूर्योदय से पहले उठें और भगवान विष्णु की पूजा करके दिन की शुरुआत करें.
-घर की सफाई करें और गंगाजल से स्नान करें.
-पीले वस्त्र पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें.
-पीले फूल, फल और मिठाई चढ़ाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करें.
-विष्णु चालीसा और विष्णु स्तोत्र का पाठ करें.
-आरती के साथ पूजा का समापन करें और पूरे दिन कठोर उपवास रखें.
-शाम को दूसरी आरती करें और केवल फलाहार ग्रहण करें
-रात्रि में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें.
-अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत खोलें और जरूरतमंदों को भोजन दान करें.
(Disclaimer: लेख सामन्य मानयताओं पर आधारित है. ZeePHH इसकी पुष्टि नहीं करता है.)