Hakeem Abdul Hameed founder of Hamdard: 'ये बेचारा है काम के बोझ का मारा, इन्हें चाहिए हमदर्द का सिंकारा'; 1990 के दशक में टीवी पर आने वाला ये विज्ञापन हममें से हर किसी को याद होगा, जिसमें काम के बोझ से दबा हुआ एक कॉर्पोरेट मजदूर सिंकारा पीने के बाद दरवाज़े के बजाये खिड़की का शीशा तोड़कर अपने ऑफिस में घुस जाता है!
भारत में सर्वाधिक बिकने वाले ओवर काउंटर मेडिसिन में सिंकारा भी शामिल है. यह एक मल्टी विटामिन सिरप है, जो भूख बढ़ाने, कमजोरी से राहत देने, थकावट कम करने, और विटामिन बी 12 की कमी से होने वाली परेशानियों को दूर करता है. सिंकारा को हमदर्द फार्म कम्पनी बनाती है.
हमदर्द फार्मा का एक दूसरा उत्पाद भी है, रूह अफज़ा जो लगातार सुर्ख़ियों में बना रहता है; कभी आउट और स्टॉक होने, कभी अपनी प्रतिद्वंदी ब्रांड दिल अफज़ा से कानूनी लड़ाई लड़ने तो कभी बाबा राम देव के बयानों की वजह से.
आज हमदर्द के सिंकारा और रूह अफजा की बात मैं इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि आज इस ब्रान्ड के संस्थापक पद्मश्री और पद्मभूषण हकीम अब्दुल हमीद की पुण्य तिथि है. 22 जुलाई 1999 को ही वो इस दुनिया- ए- फानी से हमेशा के लिए रुखसत हो गए थे, लेकिन अपने पीछे उन्होंने जन सेवा की जो एक समृद्ध विरासत छोड़ी है, उसके लिए वो हमेशा अवाम के दिलों में जिंदा रहेंगे. आज जब चिकित्सा पेशे और डॉक्टर को लोग सन्देश की नज़रों से देखते हैं, ऐसे समय में भी मरहूम हकीम अब्दुल हमीद साहब को याद किया जाना बेहद ज़रूरी है, ताकि आज के चिकित्सक समाज, देश और मानवता के लिए किये गए हकीम साहब के काम से प्रेरणा ले सके.
डॉक्टर्स के लिए प्रेरणा हैं हकीम साहब
हकीम अब्दुल हमीद, जिन्हें बड़े हकीम साहब के नाम से जाना जाता है, साल 1908 में दिल्ली में पैदा हुए थे. हकीम साहब की बुनियादी तालीम मदरसा रहमानी में हुई थी, फिर 1915 में उन्हें एक स्कूल में दाखिला दिलाया गया था. उन्होंने एंग्लो-अरबी स्कूल के एक उस्ताद अज़ीज़ुल्लाह बेग से अंग्रेजी और मौलवी नसीरुद्दीन से फ़ारसी की तालीम हासिल की थी. 1925 में उन्हें दिल्ली के तिब्बिया कॉलेज में दाखिला मिला था, जहाँ से उन्होंने 1930 में तिब्बिया ( यूनानी चिकित्सा पद्धति ) में अपनी शिक्षा पूरी की. डॉक्टरी की डिग्री लेते ही उन्होंने अपना क्लिनिक चलाना शुरू कर दिया, और कुछ ही दिनों में इलाके के वह नामचीन डॉक्टर बन गए.
वे एक सम्मानित शिक्षाविद्, समाज सुधारक और परोपकारी व्यक्ति थे. वे इस्लामी गणराज्य ईरान के चिकित्सा विज्ञान अकादमी के मानद सदस्य और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे. हकीम अब्दुल हमीद ने लगभग आधे दर्ज़न से ज्यादा प्रधानमंत्रियों और राष्ट्र्पतियों का कार्यकाल देखा था, और उनके साथ मिलकर देश में मजबूत चिकित्सा सेवा की बुनियाद रखने में अपनी भूमिका निभाई थी. उन्हें यूनानी चिकित्सा पद्धति के पुनरुद्धार और उत्थान, समर्पण और प्रयास, शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा. लोग उन्हें न सिर्फ एक चिकित्सक, दार्शनिक, विद्वान, शोधकर्ता और संस्थान निर्माता के रूप में याद करते हैं, बल्कि भारत सरकार ने भी शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा में उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें 1965 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया था.
हमदर्द लेबोरेटरीज और हकीम साहब
हकीम अब्दुल हमीद ने 1906 में पुरानी दिल्ली में एक क्लिनिक की स्थापना की थी, जिसका मकसद सस्ती कीमतों पर लोगों को यूनानी दवाएं मुहैय्या कराना था. इसी क्लिनिक में हकीम साहब ने 1907 में रूह अफज़ा का निर्माण किया था. वह एक ऐसा हर्बल मिश्रण बनाना चाहते थे जो दिल्ली के लोगों को गर्मियों में ठंडक पहुँचाए. इस क्लिनिक का नाम उन्होंने हमदर्द रखा था, जिसका मतलब होता है, दुःख- दर्द साझा करने वाला. आगे चलकर हमदर्द हमदर्द लेबोरेटरीज में तब्दील हो गया. रूह अफ़ज़ा, साफ़ी, रोग़न ए बादाम शरीरीं, सुआलिन, सिंकारा और जोशीना आदि हमदर्द के मशहूर ब्रांड हैं.
500 करोड़ का सिर्फ रूह अफज़ा बेच देती है हमदर्द
इसके अलावा हमदर्द अब ज़रूरी उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण का भी काम कर रही है. हमदर्द फ़ूड्स इंडिया अब नए उत्पादों और नए फॉर्मेट पेश करके अपने उत्पाद पोर्टफोलियो का विस्तार कर रहा है, और अपने लोकप्रिय ब्रांड को नए सेगमेंट में भी पेश कर रहा है. आज हमदर्द के पास 600+ प्राकृतिक और जड़ी-बूटी आधारित उत्पाद, 300+ पूरे भारत में क्षेत्रीय टीमों का नेटवर्क, और 5,00,000+ बड़े उपभोक्ता आधार की सेवा करने वाले आउटलेट हैं. 2024 में कम्पनी ने 500 करोड़ का सिर्फ रूहअफज़ा बेचा था. हमदर्द का सालाना 2000 करोड़ का कारोबार करती है. हालांकि इसके नेटवर्थ की जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है.
हमदर्द द्वारा संचालित संस्थाएं
आज, हमदर्द एक मजबूत व्यावसायिक मॉडल बन गया है, जो हमदर्द राष्ट्रीय फाउंडेशन (HECA) के तहत अपने धर्मार्थ काम और शिक्षा सेवाएं दे रहा है. हमदर्द अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) गतिविधियों पर खर्च करता है. परमार्थ हमदर्द द्वारा शुरू किये गए और वर्तमान में चलाए जा रहे संस्थानों और संगठनों की सूची नीचे दी जा रही है, जिसपर वो सालन करोड़ों रुपये खर्च करता है.
1. अखिल भारतीय एकीकृत तिब्बी सम्मेलन (1953)
2. हमदर्द राष्ट्रीय प्रतिष्ठान (1962)
3. चिकित्सा इतिहास एवं चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (1962)
4. भारतीय इस्लामी अध्ययन संस्थान (1963)
5. सैफिया हमीदिया तिब्बी कॉलेज, बुरहानपुर (1963)
6. हमदर्द अनुसंधान क्लिनिक एवं नर्सिंग होम (1965)
7. ग़ालिब अकादमी (1969)
8. हमदर्द फार्मेसी कॉलेज (1972)
9. हमदर्द तिब्बी कॉलेज (1973)
10. व्यापार एवं रोजगार ब्यूरो (1973)।
11. रबिया गर्ल्स स्कूल (1973)
12. उन्नत सामाजिक-कानूनी अध्ययन केंद्र (1980)
13. हमदर्द शिक्षा समिति (1981)
14. हमदर्द प्राथमिक विद्यालय (1981)
15. मजीदिया अस्पताल (1982)
16. रुफैदा नर्सिंग स्कूल (1984)
17. तकनीकी शब्दावली अनुसंधान परियोजना (1989)
18. जामिया हमदर्द (मानद विश्वविद्यालय) (1989)
19. भारत के चयनित क्षेत्रों में परिवारों की शैक्षिक स्थिति पर परियोजना (1990)
20. दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र (1990)
21. हमदर्द ऐतिहासिक अनुसंधान संस्थान (1990)
22. सेंटर फॉर फेडरल स्टडीज (1991)
23. हमदर्द अध्ययन मंडल (1992)
24. हमदर्द पब्लिक स्कूल (1993)
25. हमदर्द अभिलेखागार एवं अनुसंधान केंद्र (1993)।
हम अपनी कमाई का 85% दान में देते हैं: हामिद अहमद
हकीम अब्दुल मजीद के परपोते और हमदर्द लैबोरेटरीज इंडिया (खाद्य प्रभाग) के सीईओ हामिद अहमद कहते हैं, " 1995 में, जब मैं 18 साल का था, तब मेरे दादाजी ने मुझे ट्रस्टी नियुक्त किया था. 1948 में, उन्होंने हमदर्द को एक ट्रस्ट में बदल दिया और घोषणा की थी कि सारा लाभ दान में दिया जाएगा. हम आज भी हमदर्द लैबोरेटरीज के ट्रस्ट डीड का पालन करते हैं. हम किफायती दामों पर सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध कराते हैं. हमारा मकसद मुनाफ़ा कमाना भी है, लेकिन इस मुनाफ़े का इस्तेमाल कैसे किया जाए, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है. हम अपनी कमाई का 85% दान में देते हैं. हम संस्थान बनाते रहे हैं. हमने एक विश्वविद्यालय, कुछ स्कूल, सांस्कृतिक संस्थान और कौशल विकास संस्थान बनाए हैं. इसी मॉडल की वजह से हम अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में कामयाब हैं."
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