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पहले मुस्लिम बच्चे को लिया गोद, फिर बेरहमी से की उसकी हत्या; अब कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया कि रूसी महिला की कांप उठी रूह

Russia News: रूसी महिला वेरोनिका नौमोवा को ताजिक मुस्लिम बच्चे दलेर बोबिएव की हत्या के आरोप में 24 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई है. उसने बच्चे को गोद लिया, उसे प्रताड़ित किया और नस्लीय घृणा में उसकी हत्या कर दी. 

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पहले मुस्लिम बच्चे को लिया गोद, फिर बेरहमी से की उसकी हत्या; अब कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया कि रूसी महिला की कांप उठी रूह
Tauseef Alam|Updated: Aug 04, 2025, 10:48 PM IST
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Russia News: रूस में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. 28 जुलाई, 2025 को स्वेर्दलोव्स्क क्षेत्रीय न्यायालय ने 39 साल की रूसी महिला वेरोनिका नौमोवा को अपने गोद लिए हुए 6 वर्षीय ताजिक मुस्लिम बच्चे की हत्या के जुर्म में 24 साल कैद की सजा सुनाई.

मृतक दलेर बोबिएव ताजिकिस्तान का मूल निवासी था. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, दिसंबर 2022 में नौमोवा ने पहले दलेर को धातु के जूते के सींग से बेरहमी से पीटा और फिर उसे पानी में डुबो दिया. इसके बाद, उसने कई महीनों तक उसकी मौत की सच्चाई छिपाई. जब बच्चा लापता हुआ, तो उसकी तलाश में 1,500 से ज़्यादा स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया.

मुसलमानों से करती थी नफरत
जून 2023 में दलेर के शव के अवशेष उसके घर से लगभग 300 मीटर दूर एक गैरेज में एक स्पोर्ट्स बैग में मिले. जांच से पता चला कि नौमोवा ने दलेर को जानबूझकर प्रताड़ित करने के इरादे से गोद लिया था. वह अक्सर बच्चे को पीटती थी, उसे तहखाने में बंद कर देती थी, उसे खाना नहीं देती थी और अपमानजनक व नस्लवादी भाषा का इस्तेमाल करती थी.

जांच में हुआ बड़ा खुलासा
जांचकर्ताओं ने यह भी कहा कि नौमोवा की क्रूरता दलेर की नस्ल और मध्य एशियाई पहचान के प्रति नफ़रत से प्रेरित थी. उसका मुस्लिम होना और एशियाई रूप-रंग उसके प्रति नफ़रत का कारण बना. यह मामला रूस में बच्चों के प्रति नस्लीय नफ़रत और हिंसा को लेकर गहरी चिंताएं पैदा करता है. कोर्ट ने वेरोनिका को एक पूर्व नियोजित और घृणा से प्रेरित अपराध मानते हुए दोषी ठहराया.

मानवाधिकार संगठनों का किया स्वागत
मानवाधिकार संगठनों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है और कहा है कि दलेर बोबिएव जैसे निर्दोष लोगों को न्याय मिलना ज़रूरी है, ताकि ऐसी क्रूर घटनाओं को रोका जा सके और गोद लिए गए बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. यह घटना दुनिया को यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक निर्दोष की जान सिर्फ़ उसकी जातीय पहचान और धर्म के कारण ले ली जाती है, और ऐसे मामलों में समय पर न्याय कितना ज़रूरी है. 

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