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Meena Kumaari: तीसरी बार बेटी पैदा होने से मीना कुमारी के पिता इतने दुखी थे कि बेटी को अनाथालय में छोड़ आये थे

Meena Kumari BirthDay: मीना कुमारी उर्फ़ महजबी बानो बॉलीवुड की लीजेंड एक्टरों में एक थी. उनका निजी जीवन फिल्मों में अदा किये गए दुखांत किरदारों से भी दुखद और मुश्किल था. उन्होंने अपने दर्द को बयान करने के लिए शायरी का सहारा लिया. उनके अशार निहायत ही ऊंचे मियार के होते थे. फिल्मों में किये गए उनके किरदार अमर हो गए लेकिन दुर्भाग्य से इस महान कलाकर ने 39 साल की उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 

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Meena Kumaari: तीसरी बार बेटी पैदा होने से मीना कुमारी के पिता इतने दुखी थे कि बेटी को अनाथालय में छोड़ आये थे
Dr. Hussain Tabish|Updated: Aug 01, 2025, 08:48 PM IST
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तौहीन न कर शराब को कड़वा कह कर,
जिंदगी के तजुर्बे, शराब से भी कड़वे होते हैं। 

ये शेर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी ने लिखा था. कहा जाता है कि उनके ज़्यादातर अश'आर उनकी खुद की ज़िन्दगी के तजुर्बों के बिना पर लिखे गए थे, जिनमें  कल्पना से ज्यादा यथार्थ होता था. मीना कुमारी की पूरी ज़िन्दगी मुश्किलों में गुजरी... साफ़ लफ़्ज़ों में कहें तो उन्हें भरोसे के बदले भरोसा नहीं मिला!  

आज इस महान अभिनेत्री का जन्म दिन है. 1 अगस्त 1933 को अली बख्श और इकबाल बेगम के घर महजबी बानो का जन्म हुआ था, जो बाद में फ़िल्मी दुनिया मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुईं. इकबाल बेगम का भी पुराना नाम प्रभावती था, जो एक बंगाली ईसाई थी, लेकिन अली बख्श से शादी के बाद मुस्लमान हो गयी थी. उनके पिता एक संगीतकार थे और पारसी थिएटर से जुड़े थे. अली बख्श और इकबाल बेगम दोनों फिल्म स्टूडियो में काम करते थे. 

मीना कुमारी ने खुद कई इंटरव्यू में बताया था कि उनकी मां के मुताबिक, जब वो पैदा हुईं थी तो उनके पिता अली बख्श बेहद ग़मगीन हो गए थे. वह बिल्कुल खुश नहीं थे, क्योंकि उन्हें दो बेटियों के बाद एक बेटे की चाहत थी. 

अली बख्श बेटी होने से इतना दुखी हुए थे कि उसे एक अनाथालय में छोड़ दिया था, लेकिन कुछ घंटों बाद ही अली बख्श का अपना मन बदल गया बेटी को उठाकर वापस घर ले आए. मीना कुमारी अली और इकबाल की तीसरी बेटी थी. उनकी और दो बहनें थीं. बड़ी बहन का नाम खुर्शीद और छोटी बहन का नाम महलीका था. 

मीना कुमारी को यूं तो फिल्मों का कोई शौक नहीं था, लेकिन वह पढ़ाई से बचने के लिए अपने माता-पिता के साथ फिल्म स्टूडियो आ जाया करती थीं. वहीँ, एक दिन निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें फिल्म 'लेदरफेस' के लिए बाल कलाकार के तौर पर कास्ट करने का इरादा किया है, और काम कराया. उस वक़्त मीना कुमारी महज 4 साल की थी. इस फिल्म में काम करने के लिए उन्हें 25 रुपये मिले थे. 

इस फिल्म के बाद मीना कुमारी का एक स्कूल में एडमिशन कराया गया. 1952 में उन्होंने लीड एक्ट्रेस के तौर पर फिल्म 'बैजू बावरा' से करियर की शुरुआत की.  इसके बाद उन्होंने 'परिणीता', 'दिल एक मंदिर', 'फुटपाथ', 'शारदा', 'साहिब बीबी और गुलाम', 'काजल', 'फूल और पत्थर', 'मैं चुप रहूंगी', 'दो बीघा जमीन', 'चांदनी चौक', 'मेम साहिब', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'आरती', 'बहू बेगम', और 'पाकीजा' जैसी सफल फिल्में की. 

'परिणीता' के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड से नवाज़ा गया. 'साहिब बीबी और गुलाम' के जरिए उन्होंने चार फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले थे. 

मीना कुमारी अपने ज़माने की बेहतरीन अदाकारा थी. उनका चेहरा ऐसा था कि लोग उसे देखते रह जाते थे. कई समकालीन कलाकर उनके साथ काम करने से डरते थे कि फिल्म में मीना कुमारी की वजह से उनके काम को नज़रअंदाज़ नहीं कर दिया जाए. सेट पर साथी कलाकार उन्हें देखने के बाद अपना डायलाग तक भूल जाया करते थे. उनकी आवाज़ में एक गज़बी की कशिश थी.. बात करने के सलीका ऐसा था कि जो एक बार हम कलाम हो जाता फिर कभी भूल नहीं पाता.. यहाँ तक की मधुबाला जैसी अदाकारा भी अक्सर कहा करती थी की काश मेरी आवाज़ भी मीना जैसी होती! 

उनकी अदाकरी में गज़ब की नेचुरलिटी थी.. उन्होंने रोने के सीन में कभी ग्लिसरीन का इस्तेमाल नहीं किया. उनके नेचुरल आंसू होते थे. ट्रेजेडी वाले किरदार निभाने में वो माहिर थीं. दर्शक थिएटर में रोये बिना नहीं रह पाता था. मीना कुमारी असल ज़िंदगी में भी उनकी हमेशा ग़मों और तक्लीफ़ों से दो चार रहीं. अगर बॉलीवुड में दिलीप कुमार साहब ट्रेजडी किंग थे, तो मीना कुमारी रील और रियल दोनों लाइफ में ट्रेजडी क्वीन थी. 

कहते हैं कि अपने दर्द का इज़हार करने के लिए मीना कुमारी ने शायरी का सहारा लिया और ग़मों को भुलाने के लिए शराब का. अपनी शायरी में उन्होंने अपनी ज़िंदगी की तन्हाई के दर्द को बख़ूबी बयां किया है.

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहें कहां तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी पर,
सिमटा सिमटा सा एक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा

मीना कुमारी एक निहायत ही सहृदय महिला थी. उनके समकालीन लोग बताते थे कि वो अक्सर लोगों की मदद किया करते थे. फिल्मों में सेट पर उन्होंने बहुत सारे अनजान लोगों तक को अपना रिश्तेदार बताकर काम दिला देती थी. छोटे कलाकारों और काम करने वालों अगर प्रोडूसर की तरफ से पैसे नहीं मिलते तो वो अपनी तरफ से पैसे दे दिया करती थी. 

उनके बारे में कहा जाता है कि वो कभी भी डायलाग याद नहीं करती थीं. एक बार देखकर- पढ़कर उसे आत्मसात कर लेती थीं. 

1952 में मीना कुमारी ने निर्देशक कमाल अमरोही से शादी की थी. 

उनकी जिंदगी के बहुत से मशहूर किस्से हैं. मशहूर पत्रकार विनोद मेहता ने मीना कुमारी की जीवनी 'मीना कुमारी- अ क्लासिक बायोग्राफी' में लिखा है एक बार आउटडोर शूटिंग पर कमाल अमरोही और मीना कुमारी दिल्ली से मध्यप्रदेश निकल रहे थे. रास्ते में शिवपुरी में उनकी कार का पेट्रोल खत्म हो गया. तब कमाल अमरोही ने मीना कुमारी से कहा कि हम रात कार में सड़क पर ही बिताएंगे. तब उनको पता नहीं था कि यह डाकुओं का इलाका है. आधी रात के बाद करीब एक दर्जन डाकुओं ने उनकी कारों को घेर लिया.  एक सिल्क का पायजामा और कमीज पहने डाकुओं के एक सरदार ने कमाल से पूछा, 'आप कौन हैं ?' अमरोही ने जवाब दिया, 'मैं कमाल हूं और इस इलाके में शूटिंग कर रहा हूं. हमारी कार का पेट्रोल खत्म हो गया है."

 डाकू को लगा कि वो रायफल शूटिंग की बात कर रहे हैं. लेकिन जब उन्हें बताया गया कि ये फिल्म शूटिंग है और कार में मीना कुमारी भी बैठी हैं, तो सभी डाकुओं के सरदार ने उन्हें सोने की जगह दी और सुबह उनकी कार के लिए पेट्रोल भी मंगवा दिया. जब मीना कुमारी अपनी टीम के साथ वहां से सुबह जाने लगी तो डाकुओं के सरदार ने मीना कुमारी को नुकीला चाकू दिखाया, जिससे एक बार तो वह डर गई थीं, लेकिन उसने उस नुकीले चाकू से हाथ पर उनका ऑटोग्राफ मांगा, जैसे-तैसे मीना कुमारी ने ऑटोग्राफ दिया.  बाद में उन लोगों को पता चला कि वह मध्यप्रदेश का उस वक़्त का नामी डाकू अमृत लाल था.

31 मार्च 1972 को, 38 साल की उम्र में, लीवर सिरोसिस से मीना कुमारी का  निधन हो गया. बताया जा रहा है कि वो शराब बहुत ज्यादा पीती थी, इस वजह से लीवर खराब हो गया था. उनकी आखिरी फिल्म, "गोमती के किनारे", उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई. 

दिग्गज अभिनेत्री की कहानी को पर्दे पर दिखाने वाले सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा कहते हैं, "दिवंगत अभिनेत्री मीना कुमारी के परिवार द्वारा उनके हाथ से लिखे खतों और निजी डायरियों , उनकी कविताओं, उनके काम, उनके रिश्तों  को जाने और समझने के बाद मुझे लगता है कि वो एक यूनिक पेर्नालिटी थीं. 

31 मार्च 1972 को मीना कुमारी की मौत के लगभग 21 साल बाद कमाल अमरोही का 11 फ़रवरी 1993 को मुंबई में निधन हुआ. कमाल अमरोही की आखिरी फिल्म रज़िया सुल्तान (1983) थी. उन्हें मुंबई के एक भारतीय-ईरानी कब्रिस्तान में मीना कुमारी के बगल में दफनाया गया. 

 

 

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