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Gaza: 'मच्छर' कोडनेम; कुत्ते की जगह फिलिस्तीनी होते हैं इस्तेमाल, IDF ऐसे कर रही यूज़

Gaza News: गाजा में हालात संजीदा बने हुए हैं, इस बीच एक बड़ा खुलासा हुआ है. इजराइली फोर्स हमास से लड़ने के लिए खास तरीके का इस्तेमाल कर रही है. जिसमें आम फिलिस्तीनियों को मच्छर कोडनेम दिया गया है.

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Gaza: 'मच्छर' कोडनेम; कुत्ते की जगह फिलिस्तीनी होते हैं इस्तेमाल, IDF ऐसे कर रही यूज़
Sami Siddiqui |Updated: May 24, 2025, 12:23 PM IST
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Gaza News: गाजा में हालात संजीदा बने हुए हैं. अब इल्जाम लग रहा है कि इजराइल आम लोगों को शील्ड के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. एक फिलिस्तीनी युवक आयमन अबू हमदान ने बताया कि जब उसे इजरायली सेना ने हिरासत में लिया, तो केवल तभी उसकी आंखों की पट्टी और हाथों की रस्सियां हटाई जाती थीं, जब उसे "इंसानी ढाल" के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था.

सेना की वर्दी पहनाकर किया ये काम

36 साल के हमदान ने बताया कि उसे सेना की वर्दी पहनाई गई और उसके सिर पर एक कैमरा लगाया गया. इसके बाद उसे गाज़ा पट्टी में बने घरों में भेजा गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वहां कोई बम या हथियारबंद शख्स को नहीं है. जब एक सैन्य यूनिट का काम खत्म हो जाता, तो उसे दूसरी यूनिट को सौंप दिया जाता था

करो या मरो

हमदान ने कहा, "उन्होंने मुझे पीटा और कहा तुम्हारे पास कोई और ऑप्शन नहीं है, या तो ये करो या मरने के लिए तैयार रहो." उसने बताया कि उसे पिछले साल गर्मियों में लगभग ढाई हफ्ते तक इजरायली सेना ने उत्तरी गाज़ा में बंधक बनाकर रखा.

ऊपर से आते हैं आदेश

एक इजरायली अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर एक न्यूज एजेंसी को बताया कि अक्सर यह आदेश ऊपर से आते थे और कई बार लगभग हर यूनिट किसी न किसी फिलिस्तीनी को इस तरह इस्तेमाल करती थी. कई फिलिस्तीनियों और इजरायली सैनिकों ने बताया कि इजरायली सेना ने गाज़ा में बार-बार लोगों को इंसानी ढाल की तरह इस्तेमाल किया है.

आईडीएफ ने किया बयान

इजरायल की सेना ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि वह नागरिकों को ढाल के तौर पर इस्तेमाल करने पर सख्त पाबंदी लगाती है और ऐसा करना अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है. सेना ने यह भी कहा कि वह ऐसे मामलों की जांच कर रही है, लेकिन विस्तृत जानकारी देने से इनकार कर दिया. हमदान ने बताया कि उसे एक 'स्पेशल मिशन' के बहाने पकड़ा गया और 17 दिनों तक उससे हर घर की तलाशी करवाई गई. उसे हर रात बांध कर अंधेरे कमरे में बंद कर दिया जाता और अगली सुबह फिर से तलाशी के लिए भेजा जाता.

कुत्तों की जगह फिलिस्तीनियों का इस्तेमाल

AP से बात करने वाले इजरायली सैनिकों ने बताया कि इस प्रक्रिया को सेना में "मच्छर प्रोटोकॉल" कहा जाता है और फिलिस्तीनियों को 'भिंडी' जैसे अपमानजनक नामों से बुलाया जाता था. सैनिकों के मुताबिक, यह प्रक्रिया ऑपरेशन को तेज करती थी, गोला-बारूद बचाती थी और युद्ध में कुत्तों की मौत से भी बचाती थी.

एक सैनिक ने कहा, "एक बार जब यह तरीका शुरू हुआ, तो यह खेत में आग की तरह फैल गया. सभी ने देखा कि यह कितना आसान और प्रभावी है. उसने बताया कि एक प्लानिंग मीटिंग में कमांडर ने एक स्लाइड दिखाई जिस पर लिखा था 'एक मच्छर ले आओ' और सुझाव दिया गया कि 'सड़क से कोई भी पकड़ लो.'

अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी भी नागरिक को इस तरह जंग के कामों में इस्तेमाल करना सख्त मना है. इजरायल का सर्वोच्च न्यायालय भी इस पर 2005 में रोक लगा चुका है. इसके बावजूद मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह प्रथा अब आम होती जा रही है.

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