Muslim Personal Law Board Petition: वक्फ बिल दोनों सदनों से पास हो चुका है. बिल पास होने के एक दिन बाद देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी मंजूरी दे दी और यह बिल कानून बन गया है, लेकिन मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नेताओं ने इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने की बात चल रही है. इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और कानून को रद्द करने के लिए याचिका दायर की है.
इससे पहले दिन में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मुद्दे पर जमीयत उलमा-ए-हिंद, AIMIM के चीफ और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और आप विधायक अमानतुल्लाह खान सहित अन्य की याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए लिस्टेड करते हुए विचार करने पर सहमति व्यक्त की.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मोदी सरकार पर बोला हमला
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. AIMPLB के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक प्रेस बयान में कहा कि याचिका में पार्लियामेंट के जरिए पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई गई है, क्योंकि ये संशोधन "मनमाने, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित" हैं.
मुसलमानों के खिलाफ है यह कानून - मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
उन्होंने कहा कि संशोधनों ने न केवल भारत के संविधान के आर्टिकल 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि यह स्पष्ट रूप से सरकार की वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखने की मंशा को भी उजागर करता है, इसलिए मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि संविधान के आर्टिकल 25 और 26 अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म का पालन करने, प्रचार करने और धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने का अधिकार सुनिश्चित करते हैं.
उन्होंने कहा कि नया कानून मुसलमानों को इन मौलिक अधिकारों से वंचित करता है. बयान में कहा गया है, "केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चयन के बारे में संशोधन इस वंचना का स्पष्ट प्रमाण है. इसके अतिरिक्त, वक्फ (दाता) के लिए पांच साल की अवधि के लिए अभ्यासरत मुस्लिम होना आवश्यक है, जो भारतीय कानूनी ढांचे और संविधान के आर्टिकल 14 और 25, साथ ही इस्लामी शरिया सिद्धांतों के विपरीत है."
आर्टिकल 14 के खिलाफ है यह बिल?
मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कानून को भेदभाव और संविधान के आर्टिकल 14 के साथ खिलाफ बताते हुए कहा कि दूसरे धार्मिक समुदायों-हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और बौद्धों को दिए जाने वाले अधिकार और सुरक्षा मुस्लिम वक्फ, अवाक्फ को नहीं दी गई है. साथ ही बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को "संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक" होने के नाते इन "विवादास्पद संशोधनों को रद्द करना चाहिए, संविधान की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए" और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को "कुचलने" से बचाना चाहिए. याचिका का निपटारा अधिवक्ता एम आर शमशाद ने किया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिनिधित्व एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तल्हा अब्दुल रहमान ने किया, जो इसके महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी के माध्यम से बोर्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.