नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसला में कहा है कि किसी शख्स द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करना भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत पहली नज़र में कोई अपराध नहीं माना जाएगा. जज अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने रियाज़ नामक एक शख्स द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर विचार कर रही थी, रियाज़ पर अपने पर इंस्टाग्राम पर एक स्टोरी पोस्ट करने के लिए बीएनएस की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य) के तहत मामला दर्ज किया गया था. रियाज ने अपने पोस्ट में लिखा था, "हम सिर्फ... पाकिस्तान का समर्थन करेंगे." कोर्ट के इस फैसले से रियाज जैसे उन सैकड़ों मुसलमानों के लिए एक उम्मीद की किरण सामने आई है, जिन्हें पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान का झंडा लहराने या पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के इलज़ाम में भी गिरफ्तार कर जेल में डाला गया है.
कोर्ट में पक्ष और विपक्ष की दलील
आरोपी के वकील की दलील के मुताबिक, इस पोस्ट से भारत की गरिमा और संप्रभुता को ठेस नहीं पहुँची है, और किसी मुल्क की हिमायत करने भर से, भले ही वह देश दुश्मन ही क्यों न हो, धारा 152 बीएनएस के तहत मामला नहीं बनता है. इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि चूँकि पुलिस द्वारा आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है, इसलिए आवेदक से हिरासत में पूछताछ की कोई ज़रुरत नहीं है. दूसरी तरफ अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि आवेदक के सोशल मीडिया पोस्ट ने अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया.
पुलिस को नसीहत
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए दोहराया कि किसी सोशल मीडिया पोस्ट के संबंध में मामला दर्ज करने से पहले, खुले मन से उसपर विचार करना चाहिए. इसमें कहा गया है कि धारा 152 बीएनएस लागू करने से पहले, उचित सावधानी और विवेकशील मानकों को अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि सोशल मीडिया पर बोले गए शब्दों या पोस्ट को संकीर्ण रूप से नहीं समझा जाना चाहिए, जब तक कि वह किसी देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने वाला या अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला न हो. कोर्ट ने यहाँ सीधे तौर पर पुलिस को ऐसे मामलों में केस दर्ज करने में सावधानी बरतने की सलाह दी है. रियाज के मामले में बेंच ने अपने आदेश में कहा, "किसी भी घटना का जिक्र किए बिना या भारत का नाम लिए बिना सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन करना, प्रथम दृष्टया धारा 152 बीएनएस के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.
कब लग सकती है बीएनएस की धारा 152 ?
कोर्ट ने कहा कि धारा 152 बीएनएस के तहत अपराध माना जाने के लिए, बोलकर या लिखकर, संकेतों, विजुअल, इलेक्ट्रॉनिक संचार के जरिये देश में अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने या अलगाववादी गतिविधियों की भावना को प्रोत्साहित करने या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का मकसद होना चाहिए. भारत के नागरिकों के बीच दुश्मनी पैदा करना धारा 196 बीएनएस के तहत भी दंडनीय हो सकता है, जिसमें सात साल तक की सजा हो सकती है, लेकिन निश्चित रूप से धारा 152 बीएनएस के तहत अपराध नहीं माना जाएगा."
रियाज को शर्तों के आधार पर मिली ज़मानत
इस मामले में बेंच ने निचली अदालत के फैसले के मुताबिक, अभियुक्त रियाज को एक निजी मुचलके और समान राशि के दो जमानतदारों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.
अभियुक्त रियाज़ से गवाहों को प्रभावित न करने और बिना किसी स्थगन के मुकदमे में ईमानदारी से सहयोग करने का आग्रह करते हुए, अदालत ने आरोपी को किसी अन्य आपराधिक गतिविधि में शामिल न होने की चेतावनी दी है. इन शर्तों का उल्लंघन होने पर, यह जमानत रद्द करने का आधार होगा.
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