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Assam: CAA पर सरकारी फैसले का भारी विरोध; गैर मुस्लिमों के खिलाफ सभी केस होंगे वापस

Assam News: असम सरकार ने फैसला किया है कि सभी हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों के खिलाफ नागरिकता से जुड़े सभी मामले वापस लिए जाएंगे. इस फैसले का भारी विरोध हो रहा है. 2018 में असम में हुई एनआरसी में लगभग सात लाख मुसलमानों का नाम नहीं आया था. 

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Assam: CAA पर सरकारी फैसले का भारी विरोध; गैर मुस्लिमों के खिलाफ सभी केस होंगे वापस
Sami Siddiqui |Updated: Aug 07, 2025, 11:38 AM IST
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Assam News: असम सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है, जिसके मुताबिक 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले राज्य में आए हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों के खिलाफ नागरिकता से जुड़े सभी मामले वापस लिए जाएंगे. यह निर्णय नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के प्रावधानों के तहत लिया गया है.

असम सीएम के आदेश के बाद बैठक

राज्य के गृह और राजनीतिक मामलों के विभागों ने 8 जुलाई को एक बैठक आयोजित की थी जिसमें इस बात पर चर्चा की गई थी कि सीएए विदेशी न्यायाधिकरणों में लंबित मामलों को कैसे प्रभावित करता है. यह बैठक मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के एक आदेश के बाद हुई.

मीटिंग के डीटेल में कहा गया है कि सीए्ए के मुताबिक, ट्रीब्यूनल्स को दिसंबर 2014 को या उससे पहले असम में एंट्री करने वाले छह कम्यूनिटीज के विदेशियों के मामलों को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए. अधिकारियों को ऐसे सभी मामलों की तुरंत समीक्षा करने, ट्रीब्यूनल के सदस्यों के साथ बैठक करने और की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है.

समुदायों के खिलाफ मुकदमे वापस

राज्य ने खुद भी सीएए के तहत पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया है. सरकार ने साफ किया है कि गोरखा समेत कई  राजीवनक्षी समुदायों के खिलाफ दर्ज मुकदमे भी तत्काल वापस लिए जाएं.

इस कदम की हो रही है अलोचना

इस कदम की कई हलकों में आलोचना हो रही है. आलोचकों का तर्क है कि सीएए 1985 के असम समझौते के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि 24 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, शरणार्थी माना जाएगा.

2018 असम एनआरसी

अगस्त 2018 में, असम ने अपनी एनआरसी लिस्ट पब्लिश की थी, जिसका मकसद अवैध प्रवासियों की पहचान करना था. आखिरी लिस्ट में 19 लाख से ज़्यादा लोग शामिल नहीं थे, जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे. मार्च 2024 में, मुख्यमंत्री सरमा ने दावा किया था कि पांच लाख बंगाली हिंदू, दो लाख असमिया हिंदू और 1.5 लाख गोरखा समेत कई और समुदाय के लोग एनआरसी से बाहर रह गए हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि लिस्ट से बाहर रह गए लोगों में लगभग सात लाख मुसलमान भी शामिल हैं. भाजपा का तर्क है कि एनआरसी से बाहर रह गए हिंदू सीएए के तहत भारतीय नागरिक बन सकते हैं, जबकि मुसलमान नहीं. इस कदम ने धार्मिक भेदभाव को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं.

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