Assam CAA: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार ने 2015 से पहले आए गैर-मुस्लिम अवैध विदेशियों के मामलों को विदेशियों के न्यायाधिकरण (एफटी) से हटाने के लिए कोई खास हुक्म जारी नहीं किया है. इससे पहले रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें दावा किया गया था कि असम सरकार ने गैर मुसलमानों पर निगरिकता से जुड़े मामले हटाने को कहा है.
कैबिनेट बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरमा ने कहा, "राज्य सरकार ने सीएए में पहले से जो प्रावधान है, उसके अलावा कोई निर्देश जारी नहीं किया है. अगर कोई कैबिनेट का खास फैसला होता, तो मैं आपको बताता. कोई खास फैसला नहीं लिया गया है."
उन्होंने कहा कि सीएए उन लोगों को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करता है, जो 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में दाखिल हो चुके हैं. सरमा ने कहा, "यह कानून है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. जब तक सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द नहीं करता, यह देश का कानून है. इसके लिए किसी खास फैसले की जरूरत नहीं है."
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य कैबिनेट ने फॉरेन ट्रिब्यूनल से मामले हटाने को लेकर दो फैसले लिए थे- एक कोच-राजबंशी समुदाय के लिए और दूसरा गोरखा लोगों से जुड़ा हुआ था.
हालांकि, न्यूज एजेंसी से हासिल एक निर्देश के मुताबिक, जिस पर गृह और राजनीतिक विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अजय तिवारी के हस्ताक्षर हैं, 22 जुलाई तक सभी उपायुक्तों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं जैसे विदेशियों की स्थिति की समीक्षा करने को कहा गया है.
निर्देश में यह भी सुझाव दिया गया है कि ऐसे सभी विदेशियों को भारतीय नागरिकता के लिए सीएए के प्रावधानों के तहत आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित और सहयोग किया जाए. कानूनी प्रावधानों के अनुसार, असम में केवल एफटी ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर सकता है और इसके बाद उच्च अदालतों में अपील की जा सकती है.
पिछले साल जुलाई में, असम सरकार ने अपनी बॉर्डर पुलिस विंग को निर्देश दिया था कि 2015 से पहले राज्य में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों के मामले एफटी को न भेजे जाएं और इसके बजाय उन्हें सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने की सलाह दी जाए.
सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट, 2019 (सीएए) का मकसद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को पांच साल के निवास के बाद भारतीय नागरिकता देना है.