Nalanda News Today: हालिया कुछ सालों में भारत समेत दुनिया के कई देशों ने तरक्की के नए आयाम स्थापित किए हैं. भारत में शहरी आबादी तेजी से बढ़ रही है, इसकी वजह है लोग अब गांव की बजाय शहरों की चकाचौंध की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. हालांकि अब भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो शहरों की भागदौड़ और चकाचौंध से हटकर गांव की आबोहवा में रहना पसंद करते हैं. कुछ इसी तरह की कहानी है बिहार के नालंद जिले के रहने वाले जाहिद अंसारी की..
जाहिद अंसारी, नालंदा जिले के सरबहदी गांव के रहने वाले हैं. वह अपने गांव में अकेले मुस्लिम हैं, लेकिन उनकी एक आदत पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है. वह अकेले मुस्लिम होने के बावजूद यहां की मस्जिद में रोज अजान देते हैं. संशोधित वक्फ कानून लागू होने के बाद जाहिद का गांव में रहने का इरादा और भी मजूबत हुआ है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जाहिद अंसारी पिछले 15 सालों से दिन में पांच बार गांव की मस्जिद में अजान देते हैं, जबकि गांव में सुनने वाला कोई नहीं होता. इसकी वजह यह है कि वह गांव में इकलौते मुस्लिम हैं. 45 साल के जाहिद पेशे से मुअज्जिन हैं और यही काम उनके पिता अब्दुल समद अंसारी भी करते थे. जाहिद का कहना है, "मेरे हिंदू पड़ोसियों ने मुझे हमेशा प्यार दिया और अपनाया है. मैं यहां अपने आखिरी सांस तक रहना चाहता हूं." उन्होंने कहा, "अब मेरी सिर्फ एक ही ख्वाहिश है कि मेरी कब्र इसी मस्जिद की जमीन पर बने, जैसे मेरे पिता की है."
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, सरबहदी गांव में पहले 90 मुस्लिम परिवार रहते थे, लेकिन 1981 में बिहारशरीफ में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद ज्यादातर मुस्लिम परिवार गांव छोड़कर चले गए. हालांकि उस समय गांव पर दंगों का सीधा असर नहीं पड़ा, लेकिन डर की वजह से लोग बिहारशरीफ और पश्चिम बंगाल जैसे इलाकों में बस गए.
जाहिद बताते हैं कि यहां रहने वाले जिन मुसलमानों के पास पहले 5 से 20 बीघा जमीन थी, उन्होंने भी मजबूरी में जमीन बेच दी. साल 2005 तक गांव में सिर्फ जाहिद और उनके पिता ही रह गए. पिता के निधन के बाद जाहिद अकेले मुस्लिम बचे हैं, लेकिन अजान देना नहीं छोड़ा है. जाहिद गांव में बच्चों को पढ़ाने का काम भी करते हैं. वे मस्जिद के पास खाली जगह में क्लास लेते हैं.
हाल ही में केंद्र सरकार ने पूरे देश में वक्फ संशोधित कानून लागू किया है, जिसके बाद 'वक्फ बाई यूजर लैंड' की परिभाषा हटा दी गई है. जाहिद कहते हैं कि इस बदलाव के बाद गांव में रहना और जरूरी हो गया है, ताकि वक्फ की जमीन की देखरेख हो सके. उनके पास गांव के वक्फ की जमीन की पूरी लिस्ट है. जाहिद के मुताबिक, मस्जिद के अलावा गांव में दो कब्रिस्तान (कुल 120 डिसमिल), एक मजार (79 डिसमिल) और एक इमामबाड़ा (10 डिसमिल) है, लेकिन अब एक कब्रिस्तान गायों का बाड़ा बन गया है और दूसरा सूखी घास का भंडार बन गया है.
जाहिद अंसारी कहते हैं कि, "मैं अकेला मुसलमान हूं, लोगों से खाली करवाना आसान नहीं है. मैं यहां शांति से रहना चाहता हूं." गांव की वक्फ संपत्ति के प्रभारी मुख्तार उल हक का मानना है कि देखरेख के बिना वक्फ जमीन का कोई मतलब नहीं है. इन सबके उलट जाहिद अकेले रहकर खुश हैं. शादी के लिए पड़ोसी बुजुर्गों की सलाह को मुस्कुरा कर टाल देते हैं. जाहिद का कहना है कि "बस मस्जिद की पुताई हो जाए और बच्चों को पढ़ाने के लिए एक टीन की छत बन जाए, यही काफी है."
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