नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को 2020 में कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन के दौरान विदेशी तब्लीगी जमात के सदस्यों को शरण देने के इल्ज़ाम में 70 भारतीयों के खिलाफ दर्ज 16 एफआईआर को रद्द करते हुए सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है. इन सभी पर 190 से ज्यादा विदेशी तब्लीगी जमात के सदस्यों को कथित तौर पर शरण देने का आरोप था. इस मामले में सुनवाई पूरी करने के बाद पिछले 24 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. उल्लेखनीय है कि मार्च 2020 में देशभर में कोविड फैलने के लिए तब्लीगी जमात के लोगों को जिम्मेदार बताया गया था.
तब्लीगी जमात संगठन दुनिया के कई देशों में एक्टिव हैं, जो मुसलमानों के बीच जाकर उन्हें इस्लाम धर्म के मुताबिक आचरण करने, नमाज़ पढने, नेक राह पर चलने और मरने के बाद अपने परलोक की चिंता अभी से करने की सीख देता है. जब मार्च में अचानक लॉक डाउन की घोषणा हुई तो बाहरी मुल्कों से आने वाली जामत के लोग भारत के अलग- राज्यों में फंस गए थे. उस वक़्त ऐसे लोगों को स्थानीय मुसलमानों ने अपने- अपने घरों आदि में पनाह दिया था.
लेकिन हिंदू संगठनों सहित सरकार समर्थित लोग और मीडिया समूहों ने जमात के लोगों पर स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने और महामारी फैलाने में योगदान देने का आरोप लगाया था. ये आरोप जल्द ही एक बड़े सोशल मीडिया अभियान और जन आक्रोश में बदल गए, जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय को हस्तक्षेप करना पड़ा. इसके बाद, दिल्ली पुलिस ने उपस्थित लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए, विशेष रूप से विदेशी नागरिकों और तब्लीगी जमात के भारतीय सदस्यों पर, जिन लोगों ने विदेशी जमात के लोगों को शरण दिया था. तब्लीगी जमात के बहाने पूरे मुस्लिम समुदाय को कठघरे में खड़ा कर दिया गया था.
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इस मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम जैसे विभिन्न कानूनों के तहत 70 भारतीय नागरिकों सहित 193 व्यक्तियों से संबंधित 28 प्राथमिकी दर्ज की गईं थी. आईपीसी की धारा 188, 269, 270 और 120-बी का हवाला दिया गया, जो गैरकानूनी जमावड़े और संक्रामक रोगों के लापरवाही से फैलने से संबंधित हैं. ट्रायल चलने के बाद कोर्ट ने विदेशी नागरिकों के खिलाफ मुकदमों को हटा दिया था. इस मामले में अदालत ने पुलिस की कार्रवाई की वैधता पर संदेह जताया था.
कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील ने दलील दी थी कि तब्लीगी जमात के सदस्यों पर मुकदमा चलाना संकट के समय अल्पसंख्यक समुदायों को बलि का बकरा बनाने के एक पैटर्न को दर्शाता है. मीडिया और राजनीतिक बयानबाजी के ज़रिए इस समूह को "सुपर स्प्रेडर" बताने की बात को बढ़ावा दिया गया, जिससे महामारी के दौरान मुसलमानों के प्रति नफरत को बल दिया गया.