Delhi Riot 2020: दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में 12 आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि हत्या के लिए पेश किए गए सबूत केवल "टुकड़ों और अधूरे सुरागों" पर आधारित थे और किसी को दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं थे.
हालांकि, अदालत ने लोकेश सोलंकी नामक आरोपी को आईपीसी की धारा 153A (धर्म के आधार पर दुश्मनी फैलाना) और 505 (सार्वजनिक शरारत से जुड़ा बयान) के तहत दोषी करार दिया है.
अभियोजन के मुताबिक, सभी आरोपी एक दंगाई भीड़ का हिस्सा थे, जिसने 25 फरवरी 2020 को आस मोहम्मद नाम के शख्स की हत्या कर दी थी और उसकी लाश भगीरथी विहार नाले में फेंक दी थी.
5 जून को दिए गए 62 पन्नों के फैसले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमचला ने कहा कि सोलंकी एक ‘कट्टर हिंदू एकता’ नाम का व्हाट्सएप ग्रुप का मेंबर था. इस ग्रुप में मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक और भड़काऊ मैसेज भेजे गए थे, जिनका मकसद हिंदू समुदाय के लोगों को एकजुट कर मुसलमानों के खिलाफ भड़काना था.
फैसले में कहा गया कि लोकेश सोलंकी ने व्हाट्सएप ग्रुप में लोगों को हथियार उपलब्ध कराने की पेशकश की थी, ताकि वे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा कर सकें. कोर्ट ने माना कि ऐसे संदेश लोगों में नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने के इरादे से भेजे गए थे.
हालांकि, अदालत ने कहा कि व्हाट्सएप चैट को केवल सहायक (कॉरॉबरेटिव) सबूत के रूप में देखा जा सकता है, यह मूल (सब्स्टेंटिव) सबूत नहीं है. इसलिए, केवल चैट के आधार पर यह साबित नहीं किया जा सकता कि सोलंकी या अन्य ने हत्या की. कोर्ट ने कहा कि जब तक यह स्पष्ट नहीं होता कि हत्या करने वाली भीड़ में कौन-कौन था, तब तक किसी पर भीड़ के अपराध की जिम्मेदारी नहीं थोपी जा सकती.
इस मामले में बरी किए गए 12 आरोपियों के नाम हैं: लोकेश सोलंकी, पंकज शर्मा, सुमित चौधरी, अंकित चौधरी, प्रिंस, जतिन शर्मा, ऋषभ चौधरी, विवेक पंचाल, हिमांशु ठाकुर, संदीप, साहिल और टिंकू अरोड़ा. इन सभी को हत्या के अलावा दंगा, नुकसान पहुंचाना, और गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा बनने जैसे आरोपों से भी बरी कर दिया गया है