उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में एक महिला ने जलालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा नाम के शख्स पर कथित धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराया था. इस मामले में जांच एजेंसियां हर रोज नये- नये खुलासे कर रही हैं. इससे पहले धर्मांतरण को लेकर कथित 'लव जिहाद' के भी आरोप लगते रहे हैं.
सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक जगहों पर मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जा रहा है और कई जगहों पर देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को हिंसा का भी सामना करना पड़ा है. हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के के प्रेम विवाह को 'लव जिहाद' नाम दिया जा रहा है, जबकि मुस्लिम लड़की का किसी बहुसंख्यक समुदाय के लड़के से शादी और धर्म परिवर्तन को प्रेम माना जाता है.
पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के जरिये इस्लाम में धर्मांतरण कराने के नाम की गई कार्रवाई को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर मौलाना अरशद मदनी ने अपने बयान कहा कि जिस तरह से जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने की खबरें चल रही हैं और इसे बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जा रह है. लेकिन हकीकत में संभव नहीं है कि वर्तमान के हिंदुस्तान में किसी हिंदू को जोर जबरदस्ती मुसलमान बनाया जा सके.
हिंदू संगठनों के जरिये मुसलमानों पर धर्मांतरण के आरोप लगाकर निशाना बनाए जाने की खबरें समय-समय पर सामने आती रही हैं, खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में. हालांकि, ज्यादातर मामलों में सबूतों की कमी और अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन को गलत तरीके से पेश करने की शिकायतें भी सामने आई हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस्लाम में लालच देकर या जोर जबरदस्ती किसी का धर्म परिवर्तन कराया जा सकता है या फिर शादी करके किसी महिला को मुस्लिम बनने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
दरअसल, इस्लाम धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन (जबरदस्ती इस्लाम कुबूल करवाना) की न तो इजाजत है और न ही यह कुरआन या हदीस के अनुसार जायज (वैध) ठहराया गया है. इस्लाम की बुनियादी शिक्षाएं इंसान की आजादी, मर्जी और समझ-बूझ से लिए गए फैसले को सबसे ऊपर रखती हैं. इसका जिक्र कुरआन और हदीसों से भी स्पष्ट है.
कुरआन मजीद की सूरह अल-बक़रह (2:256) में अल्लाह तआला फरमाता है: لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ. यानी दीन में कोई ज़बरदस्ती नहीं है. इस आयत से यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि इस्लाम में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है. यह आयत मजहबी आजादी और इंसानी गरिमा को दर्शाती है.
इसको स्पष्ट करते हुए मुफ्ती मोहम्मद इसहाक कासमी ने कहा, "दीन को फैलाने में कोई जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती है. सच्चा मुसलमान वह है जो अल्लाह और उसके पैगंबर की बात पर अमल करे. जो हमारे बुजुर्गों ने हमें बताया सिखाया उसे पर अमल करे." उन्होंने आगे कहा, "सच्चा मुसलमान वह है जो अपने ईमान पर कायम रहते हुए आपसी प्यार, मोहब्बत और भाईचारा बढ़ाए."
दूसरी जगह, सूरह यूनुस (10:99) में अल्लाह फरमाता है, "अगर आपका रब चाहता, तो सब लोग ईमान ले आते. क्या अब तुम लोगों को मजबूर करोगे कि वे मोमिन बन जाएं?" यह आयत इस बात की गवाही देती है कि अल्लाह ने भी किसी पर ईमान थोपने का तरीका नहीं अपनाया. ईमान एक ऐसी नेमत है जिसे दिल से कुबूल किया जाना चाहिए, न कि डर या दबाव में.
पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जुड़ी हुई हदीसों इसके स्पष्ट सुबूत है. सहीह अल-बुखारी (हदीस संख्या: 6924) में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं, "जिसने किसी गैर-मुस्लिम पर जुल्म किया. उसके अधिकार छीने या जबरन कोई चीज उस पर लादी तो मैं कयामत के दिन उसके खिलाफ़ गवाही दूंगा."
यह हदीस इस्लाम के उस न्यायप्रिय मूलभाव को उजागर करती है, जिसमें हर मजहब के मानने वालों की इज्जत और उसके अधिकारों की हिफाजत करने के आदेश दिए गए हैं.इस्लाम दया, इंसाफ और आजादी का मजहब है. जबरन धर्म परिवर्तन न सिर्फ गलत है बल्कि शरीयत और पैगंबर की सीरत (चरित्र या स्वभाव) के खिलाफ़ भी है. इस्लाम ने हमेशा इंसान को सोचने, समझने और अपने दिल से सच्चाई को कुबूल करने की आजादी दी है.
धर्म परिवर्तन के विवाद को लेकर मौलाना और मुफ्तियों का अहम बयान सामने आया है. हिंदूवादी संगठनों के आरोपों पर मुफ्ती अब्दुस्सलाम ने कहा, "हिंदुस्तान में ऐसी कोई बात नहीं है, जहां इस तरह के अमल हो. किसी गैर मजहब शख्स को अपने मजहब में लाना, वह गलत है." उन्होंने कहा, "सच्चा मुसलमान वह है जो अल्लाह और उसके रसूल के बताई हुई बातों पर चले. पांचों वक्त नमाज पढ़े, रोजे रखे क्योंकि कुरानकहता है कि जबरदस्ती किसी का मजहब आप नहीं बदलवा सकते. हिंदुस्तान का जो कानून है, मुसलमान उस पर अमल करता है. यह सिर्फ एक शक्ल पोर्ट्रेट करने की कोशिश है."
इसी तरह मुफ्ती मोहम्मद शमशाद कासमी ने कहा, "इस्लाम में जबरदस्ती किसी मजहबी नहीं बनाया जा सकता है." जबरन धर्मांतरण के आरोपों को उन्होंने सिरे से खारिज करते हुए कहा, "यह गलत इल्जाम है. इस्लाम कहता है कि जो अपनी खुशी से मोहब्बत से इस्लाम में दाखिल होना चाहे, वह आ सकता है लेकिन किसी को जोर जबरदस्ती के साथ इस्लाम में दाखिल नहीं कराया जा सकता है." मुफ्ती शमशाद कासमी ने कहा, "मुसलमानों और इस्लाम की गलत शक्ल पेश की जा रही है. मुसलमान पर जबरदस्ती धर्मांतरण कराने का आरोप, साजिश के तहत लगाया जा रहा है."