Jharkhand News: मुसलमानों में सोरेन सरकार को लेकर नाराज नजर आ रहे हैं. क्योंकि यह समुदाय पिछले 6 सालों से लगातार सरकारी अल्पसंख्यक संस्थानों को सक्रिय और संगठित करने की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है.
चुनाव से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया था कि उनके साथ न्याय होगा और सरकारी अल्पसंख्यक संस्थानों को सक्रिय और संगठित करने के लिए कार्रवाई की जाएगी.
मुसलमानों की मांग थी कि झारखंड उर्दू अकादमी, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, राज्य अल्पसंख्यक वित्त निगम लिमिटेड, उर्दू सलाहकार समिति, राज्य हज समिति और अन्य बोर्ड और निगमों का दोबारा गठन किया जाए. लेकिन दुर्भाग्य से इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
जब हेमंत सोरेन ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो उन्होंने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों की समस्याओं का समाधान प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाएगा, क्योंकि उनकी यह मांग पुरानी है और सरकार उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उनकी समस्याओं के समाधान के लिए तत्काल कदम उठाएगी. हालांकि, सोरेने का ये बयान के केवल बयान ही साबित हुआ.
इसी सिलसिले में उर्दू आवाम ने एक बार फिर सोरेन सरकार पर दबाव की नीति अपनाने का फैसला किया है. झारखंड में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं. राज्य सरकार ने इसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां शुरू कर दी हैं. इन चुनावों में राज्य की दूसरी सबसे बड़ी आबादी ने काम के आधार पर सरकार से बदला लेने का फैसला किया है.
लोगों का मानना है कि अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों की समस्याओं से उन्हें कोई सरोकार नहीं है और न ही उन्हें उर्दू के प्रचार-प्रसार के लिए कदम उठाने की जरूरत है, जिसका पक्षपाती अधिकारी भरपूर फायदा उठा रहे हैं. इस संबंध में कई लेखकों और कवियों का कहना है कि वे इसके लिए सरकार से ज्यादा उर्दू भाषियों को जिम्मेदार मानते हैं.
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