Kathua News Today: जहां एक ओर सरकार 'डिजिटल इंडिया, विकसित भारत और हर घर तक विकास' जैसे दावे करती है. वहीं, हकीकत यह भी है कि आजादी के 78 साल बाद भी जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में आज भी बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. विकास के बड़े-बड़े वादों के बीच यहां के ग्रामीण एक अस्थायी रस्सी के झूले पर अपनी जिंदगियां दाव पर लगा रहे हैं वो भी 21वीं सदी में, जब भारत ने चांद पर कदम रख दिया.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले की बनी सब-डिवीजन के दो दूरदराज गांव घट और घत्थ की 300 से ज्यादा आबादी हर दिन जिंदगी को जोखिम में डालकर जीने को मजबूर है. इन गांवों को जोड़ने वाली सेवा नदी पर अब तक पुल नहीं बन पाया है. नतीजतन, गांव वालों को उफनती नदी पार करने के लिए रस्सी से बनाए गए अस्थायी झूले का सहारा लेना पड़ता है.
सबसे ज्यादा परेशानी छोटे स्कूली बच्चों को होती है, जिन्हें हर रोज इस खतरनाक झूले के जरिए स्कूल जाना पड़ता है. बरसात के मौसम में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है. नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है, जिसकी वजह से न सिर्फ बच्चों बल्कि बड़ी उम्र के लोगों की सुरक्षा पर बड़ा खतरा मंडराता है. कई बार तो स्कूल जाना ही छोड़ना पड़ता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार इस गंभीर समस्या को लेकर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. गांववालों की मांग है कि सेवा नदी पर एक स्थायी पुल का निर्माण जल्द से जल्द किया जाए ताकि बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को सुरक्षित आवाजाही मिल सके.
बच्चों के अभिभावकों ने सरकार से अपील की है कि वह कागजों में नहीं बल्कि जमीन पर विकास करके दिखाए. ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो कोई बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है. प्रशासन को चाहिए कि वह इस समस्या का त्वरित संज्ञान ले और बच्चों की जान को जोखिम से बचाने के लिए ठोस कदम उठाए.