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किशनगंज में सबसे ज्यादा वक्फ संपत्ति, लेकिन आमदनी सबसे कम, वजह जान रह जाएंगे दंग

Waqf Amendment Act in Bihar: संशोधित वक्फ कानून को लेकर बिहार समेत पूरे देश में घमासान जारी है. बीते दिनों विपक्षी दलों ने किशनगंज में एक मंच से इस कानून के खिलाफ हल्ला बोला, तो दूसरी तरफ बीजेपी लोगों के बीच में 'शुक्रिया मोदी भाईजान' कार्यक्रम के जरिये इसके फायदे बताने में जुटी है. अब किशनगंज में वक्फ की संपत्ति पर करोड़ों के हेरफेर करने का मामला सामने आया है.   

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वक्फ कानून के खिलाफ किशनगंज में प्रदर्शन करता विपक्ष
वक्फ कानून के खिलाफ किशनगंज में प्रदर्शन करता विपक्ष
Zee Salaam Web Desk|Updated: Apr 21, 2025, 08:26 PM IST
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Kishanganj News Today: संशोधित वक्फ कानून लागू होने के बाद पूरे देश में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. वक्फ कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भारी हिंसा देखने को मिली. इसके अलावा पूरे देश में कई जगहों पर इसको लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. किशनगंज में भी विपक्षी दलों ने एक मंच पर आकर इस कानून का पुरजोर विरोध किया है. 

मुस्लिम समुदाय के भारी विरोध के बीच कई जगहों पर इस कानून को लोगों का समर्थन भी मिल रहा है. किशनगंज में कई ऐसे सभ्रांत मुस्लिम नाम हैं, जो संशोधित वक्फ कानून लागू होने के बाद मोदी सरकार की जमकर तारीफ कर रहे हैं. उनका दावा है कि इस कानून के आने से गरीबों को इंसाफ मिलेगा और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी.

60 फीसदी संपत्ति पर अतिक्रमण!

दरअसल, किशनगंज जिले में वक्फ की बेशकीमती संपत्तियों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमणकारियों और भू माफियाओं का कब्जा है. इसको लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं. उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया कि वक्फ की कई बेशकीमती संपत्तियों पर मुतवल्लियों का कब्जा है. 

मिली जानकारी के मुताबिक, किशनगंज जिले में लगभग चार हजार (4,000) बीघा वक्फ की जमीन है, लेकिन 60 फीसदी से अधिक हिस्से पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है. साथ ही जिले में 58 वक्फ स्टेट रजिस्टर हैं. बिहार के सभी 38 जिलों की तुलना में किशनगंज जिले में वक्फ बोर्ड की सबसे अधिक संपत्ति है, लेकिन वक्फ बोर्ड की आमदनी इसी जिले में सबसे कम भी है.

कौड़ियों के भाव में किराये पर दिया

शहर के मुख्य बाजार सौदागर पट्टी में बुलाकी वक्फ स्टेट की अरबों रुपये की संपत्ति है. इस पर दो दर्जन से अधिक दुकानें बनी हुई है, जिसका किराया सुन कर सर पीटने पर मजबूर हो जाएंगे. बताया जा रहा है कि वक्फ के संपत्ति पर बनी कुछ दुकानों का किराया 500 रुपये प्रति माह है, जबकि कई दुकानदार तो ऐसे हैं जो सिर्फ 340 रुपये महीने का किराया दे रहे है और दुकानों से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. 

बताया जा रहा है कि इन दुकानों का वर्तमान किराया मार्केट रेट के मुताबिक 20 हजार से लेकर 25 हजार रुपये तक होना चाहिए. आरोप है कि मुतवल्ली की मिली भगत से यह सारा खेल सालों से चल रहा है. इनमें से कई दुकानदार ऐसे हैं, जो मुतवल्ली के रिश्तेदार है और किराये के नाम पर महज खानापूर्ति करते हैं.

मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि जिस उद्देश्य के लिए पूर्वजों ने अपनी जमीन वक्फ की थी,उसकी पूर्ति नहीं हो रही है. यहां के मुतवल्ली आपस में मिलीभगत कर पैसों का बंदरबाट कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वक्फ की जितनी संपत्ति है, अगर सही से उसका देखभाल हो तो आज सिर्फ बुलाकी वक्फ बोर्ड की महीने की इनकम लाखों में होगी. 

'धांधली और अवैध कब्जे के दावे खारिज'

एक मुस्लिम युवक ने कहा कि अगर वक्फ की जमीन पर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज खुला होता तो आज यहां के युवा बाहर नहीं जाते. युवक का कहना है कि  अगर आज इस संपति का सही इस्तेमाल होता, तो मुस्लिमों का हाल बेहाल नहीं होता. इस बारे में जब बुलाकी वक्फ स्टेट के मुतवल्ली मोहम्मद फारूक से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया. 

अनुमंडल पदाधिकारी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं. इसी तरह जब उनसे वक्फ बोर्ड कमेटी में मनमानी और धांधली के बारे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मुतवल्ली के साथ समय- समय पर बैठक की जाती है. हालांकि, उन्होंने वक्फ की संपत्ति पर अवैध कब्जों के आरोप से इंकार किया. उन्होंने कहा कि ऐसी शिकायत नहीं मिली है और मिलती है तो जांच की जाएगी.

स्थानीय लोगों ने का कि मामला चाहे कुछ भी हो, जिले की तमाम वक्फ संपत्तियों की जांच स्वतंत्र कमेटी के जरिये करवाए जाने की जरुरत है. ऐसे में जिस उद्देश्य के लिए संपत्ति वक्फ की गई थी, उसे वास्तविक रुप में जमीन पर उतारा जा सके.

वक्फ कानून बन सकता है चुनावी मुद्दा?

एक तरफ बिहार और केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के नेता आम लोगों के बीच जाकर संशोधित वक्फ कानून के कथित फायदे बता रहे हैं. इसको लेकर हालिया दिनों बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने 'शुक्रिया मोदी भाईजान' के जरिये पसमांद मुस्लिमों को साधने में लगे हैं. दूसरी तरफ विपक्षी दल लगातार इस कानून का विरोध कर रहे हैं और इसको सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है. सत्तासीन और विपक्षी दल बिहार विधानसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कवायद में जुटे हैं.

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