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Kushinagar: मजार के बाद अब नया विवाद, क्या चलेगा गड़हिया मस्जिद पर बुलडोजर

Kushinagar Mosque Demolition: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में अब एक और विवाद छिड़ गया है. इस बार मस्जिद को अवैध घोषित किया गया है. जानें क्या है पूरा मामला?

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Kushinagar: मजार के बाद अब नया विवाद, क्या चलेगा गड़हिया मस्जिद पर बुलडोजर
Sami Siddiqui |Updated: Jun 12, 2025, 12:23 PM IST
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Kushinagar Mosque Demolition: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मौजूद तमकुहीराज तहसील क्षेत्र के गड़हिया चिंतामन गांव में सड़क की जमीन पर बनी मस्जिद को तोड़ा जाना है. इस मस्जिद को लेकर काफी वक्त से विवाद चल रहा था. मंगलवार को इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला आया. एडीएम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल की गई अपील को खारिज करते हुए तहसीलदार कोर्ट के जरिए जारी किए गए बेदखली आदेश को बरकरार रखा है.

कोर्ट ने आदेश में क्या कहा है?

एडीएम कोर्ट के आदेश में साफ तौर पर कहा गया कि न्यायालय ने मामले से संबंधित संपूर्ण पत्रावली का रिव्यू किया और सभी फैक्ट्स की गहन जांच की. जांच में यह सामने आया कि जिस जमीन पर मस्जिद को तामीर किया गया है, वह गाटा संख्या 645 व 648 के अंतर्गत आती है और राजस्व अभिलेखों में ‘रास्ते’ के तौर पर दर्ज है. यानी यह सार्वजनिक मार्ग की जमीन है, जिस पर धार्मिक ढांचे का निर्माण नियमों के खिलाफ किया गया है.

यह मामला तब सामने आया जब गड़हिया चिंतामन गांव के निवासी अरविंद किशोर शाही ने इस संबंध में शिकायत करते हुए आरोप लगाया कि सार्वजनिक रास्ते की जमीन पर मस्जिद का अवैध तौर पर तामीर की गई है. इसके बाद प्रशासन ने जांच की कार्रवाई शुरू की और तहसीलदार कोर्ट ने उक्त भूमि पर कब्जा हटाने का आदेश जारी किया.

मुस्लिम पक्ष की अपील खारिज

मुस्लिम पक्ष ने इस आदेश को चुनौती देते हुए एडीएम कोर्ट में अपील दाखिल की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है. माना जा रहा है अब तहसील प्रशासन बेदखली आदेश के मुताबिक आगे की कार्रवाई करेगा. वहीं, क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से पुलिस प्रशासन सतर्क है ताकि किसी भी स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके.

इससे पहले कुशीनगर में एक मजार को लेकर विवाद छिड़ा था. आरोप है सैयद शहीद बाबा का मजार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित एक प्राचीन स्मारक की भूमि पर बनाया गया है. वहीं, मजार की देखरेख करने वाले परिवार और मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह मजार कई सौ साल से अस्तित्व में है और उनके पूर्वजों के समय से ही इसकी सेवा और देखरेख की जाती रही है.

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