Ujjain Mahakal Temple: जहां एक ओर सोशल मीडिया और राजनीतिक विमर्श में मुगलों, खासकर औरंगजेब की हिंदू विरोधी के रुप में पेश किया जा सकता है. इसका फायदा कई राजनीतिक संगठन दो समाजों को बांटने में करते हैं. हालिया दिनों एनसीईआरटी (NCERT) मुगलकाल से जुड़ा चैप्टर सिलेबस से हटाने का ऐलान किया. एनसीईआरटी के इस ऐलान ने एक बार फिर औरंगजेब और मुगलों के ऐतिहासिक शासनकाल पर चर्चा शुरू हो गई है.
वहीं, मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज एक बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करते हैं. इन दस्तावेजों ने औरंगजेब के खिलाफ झूठे प्रचार करने वाले संगठनों को आईना दिखाने का काम किया है, जो औरंगजेब पर मंदिर तोड़ने का आरोप लगाते रहे हैं. महाकालेश्वर मंदिर जिसे महाकाल मंदिर भी कहा जाता है, भगवान शिव का समर्पित है.
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. महाकालेश्वर मंदिर का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह अकेला ज्योतिर्लिंग है जिसे "दक्षिणमुखी" यानी दक्षिण की ओर मुख वाला माना जाता है, जो इसे दूसरे ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाता है. यहां पर हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते हैं. मंदिर के पुजारियों का दावा है कि औरंगजेब के शासनकाल में भी इस प्राचीन शिव मंदिर की परंपराएं बिना किसी रुकवाट के चलती रहीं. इतना ही नहीं तत्कालीन औरंगजेब प्रशासन की ओर से मंदिर की पूजा-पद्धति को बनाए रखने में भरपूर मदद की गई.
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में एक खास दीया सदियों से लगातार जलता आ रहा है, जिसे "नंदा दीप" कहा जाता है. मान्यता है कि इसे कभी बुझने नहीं दिया जाता है. इस दीप को जलाए रखने के लिए रोजाना चार सेर घी लगता था, जिसे प्रशासन की ओर से प्रदान किया जाता था और यह परंपरा मुगल काल में भी जारी रही. खासकर औरंगजेब के शासनकाल में भी यह परंपरा जारी रही.
मंदिर के पुजारियों के मुताबिक, उनके पास एक शाही फरमान की कॉपी मौजूद है जो 15 शवाल 1061 हिजरी (1651 ईस्वी) को जारी किया गया था. यह फरमान मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, उनके भाई मुराद बख़्श के जरिये मंदिर के पुजारी देव नारायण की अर्जी पर जारी हुआ था. दस्तावेजों के मुताबिक, अर्जी की जांच हकीम मोहम्मद मेहदी वकील नवीस ने की और फिर कोतवाली के तहसीलदार को आदेश दिया गया कि मंदिर के लिए नियमित घी की आपूर्ति की जाए।
औरंगजेब के शासन के लगभग 93 साल बाद 1153 हिजरी में एक और शाही फरमान जारी हुआ, इस बार आदेश देने वाले थे मोहम्मद सादुल्लाह. पुजारियों का मानना है कि अगर औरंगजेब का आदेश निष्क्रिय हो गया होता तो उसकी नकल लेने या उसे दोहराने की जरूरत ही नहीं पड़ती. इससे जाहिर होता है कि औरंगजेब के समय और उससे पहले और बाद में मंदिर की परंपराओं को बरकरार रखने के लिए मदद जारी रही थी.
महाकाल मंदिर के पूर्व महंत लक्ष्मी नारायण और अन्य पुजारी बताते हैं कि उनके पास औरंगजेब काल से जुड़े कुछ और भी शाही दस्तावेज मौजूद हैं, जिनमें मंदिर से संबंधित व्यवस्थाएं दर्ज हैं. ये दस्तावेज मंदिर के अभिलेखागार और सरकारी विभागों में महफूज हैं.
इन तथ्यों के सामने आने के बाद यह सवाल उठता है, क्या इतिहास को एकतरफा पढ़ा और परोसा जा रहा है? महाकाल मंदिर से जुड़े ये प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि औरंगजेब को सिर्फ 'हिंदू विरोधी' के रूप में देखना अधूरा और ऐतिहासिक रूप से अनुचित हो सकता है. इतिहास के हर पन्ने में अगर विभाजनकारी तथ्य हैं, तो सहिष्णुता के भी कई अध्याय हैं. बस जरुरत है उन्हें निष्पक्ष नजरिये से पढ़ने और समझने की.