Ajmer News Today: इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम है, इस बार अरबी का पहला महीना 27 जून से शुरू हो रहा है. इस मौके पर जब देश और दुनिया के मुस्लिम समाज का एक तबका गमे हुसैन में डूबा होगा और इसकी शुरुआत मोहर्रम के चांद से होगी. इसी कड़ी में देशभर के मुस्लिम बोहरा समाज ने 27 जून से 5 जुलाई तक अपने सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बंद रखने का फैसला लिया है.
अजमेर के बोहरा समाज के प्रतिनिधि मोहम्मद अली बोहरा ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस महीने को मुस्लिम समाज में बेहद गमगीन माना जाता है. अजमेर मुस्लिम बोहरा समाज के प्रतिनिधि मोहम्मद अली बोहरा ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना मुहर्रमुल हराम है. इस महीने में आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन (र.अ.) और उनके 72 साथियों की शहादत हुई थी.
मोहम्मद अली बोहरा ने बताया कि इराक के करबला में हक और बातिल की जंग में इमाम हुसैन शहीद हुए और उनके खानदान पर यजीदी फौज ने जुल्म सितम ढहाया. उन्होंने बताया कि यही वजह है कि मोहर्रम के दस दिन बोहरा समाज अपना कारोबार बंद कर गमे हुसैन में खो हो जाता है.
मोहर्रम को लेकर मोहम्मद अली ने बताया कि राजस्थान समेत मुल्क भर में 27 जून से बोहरा समाज के लोग अपना कारोबार बंद रखेंगे और मोबाइल का भी इस्तेमाल ना के बराबर करेंगे. मोहम्मद अली बोहरा के मुताबिक, मोहर्रम गम का महीना है, इसलिए मजहबी प्रोग्राम का ओयजन किया जाएगा.
अजमेर में मजहबी कार्यक्रमों को लेकर बोहरा समाज के प्रतिनिधि ने बताया कि मोहर्रम के मौके पर ताजिये के साथ- साथ मरसिया, मजलिसों और करबला की जंग का जिक्र करके सभी शोहदा-ए-करबा को याद किया जाता है. उन्होंने सलाह दी कि मोहर्रम में हर इंसान को सब्र, अमन- शांति और खुशहाली के लिए दुआ करनी चाहिए. इसलिए बोहरा समाज अपने कारोबार को बंद कर यादे हुसैन मनाता है.
मोहम्मद अली ने बताया कि इस आयोजन का मकसद इस मुकद्दस महीने में कई मजहबी तकरीब से दूर ना हो और सब मिलकर पूरे वक्त मातम करें, अल्लाह की इबादत करें. अजमेर समेत पूरे मुल्क में कई दिनों से मोहर्रम की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. इसको लेकर बाजारों में भी रौनक देखी जा रही है और भव्य ताजियों का निर्माण किया जा रहा है.
बता दें, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम है, जिसे मुस्लिम समुदाय विशेष रूप से शिया और बोहरा मुसलमान गम और अकीदत के साथ मनाते हैं. यह महीना हजरत इमाम हुसैन (र.अ.) और उनके 72 साथियों की शहादत की याद दिलाता है, जो करबला की जंग में अन्याय के खिलाफ डटकर खड़े हुए और अपने जान की कुर्बानी दे दी.
गम-ए-हुसैन सिर्फ मातम नहीं बल्कि इंसाफ, सच्चाई और बलिदान की अजीम मिसाल है. ताजिये, मजलिस और मातमी जुलूसों के जरिये अकीदतमंद लोग इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हैं, जिससे दुनिया और समाज में होने वाली नाइंसफी के खिलाफ आवाज बुलंद करने का हौसला मिलता है.