West Bengal News Today: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में मुहर्रम को खास अंदाज में मनाया जाता है. इस बार भी माहे गम यानी मुहर्रम को पारंपरिक तरीके से मनाया जा रहा है. यहां पर गांव-गांव में ताजिए निकाले जा रहे हैं और मेलों का आयोजन किया जा रहा है. हालांकि, अब मुहर्रम के माह में धीरे-धीरे कई पारंपरिक चीजें गायब होती जा रही हैं. कभी मोहर्रम की पहचान रहा 'लाठी का खेल' अब दिखाई नहीं देता.
दरअसल, जलपाईगुड़ी और उत्तर बंगाल के कई गांवों में आज भी मोहर्रम के मौके पर 'बीबी की शादी', ताजिया, टका खेल, घोड़ा खेल जैसे कई पारंपरिक आयोजन होते हैं. पहले इन आयोजनों में मुसियार नाम की लोक मंडलियां हिस्सा लेती थीं. ये मंडलियां गांव-गांव जाकर पांच दिन तक नाटक, अजादारी, नोह कर दूसरे खेल दिखाती थीं.
इसके बाद सभी आमो खास चंदा इकट्ठा किया जाता है और सार्वजनिक दावत का इंतजाम किया जाता है. चंदे की रकम देने में लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और इसको देना पुण्य (सवाब) मानते हैं. इसके बाद आखिरी दिन किसी धार्मिक स्थल पर मुकाबला होता, जहां विजेता मंडली को इनाम मिलता है.
अब मुसियार मंडलियां लगभग खत्म हो चुकी हैं, लेकिन मुहर्रम के मेलों में अब भी परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है और लोग पूरे अकीदत के साथ इसमें शामिल होते हैं. इतवार (6 जुलाई) को जलपाईगुड़ी शहर के पास गोरालबाड़ी के हाटपुखुरी में बड़ा मेला का आयोजन किया गया. इस दौरान दूर-दूर से आए खिलाड़ी ने अपना करता दिखाया.
गोरालबाड़ी के हाटपुखुरी में बड़ा मेले में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने मेले का रुख किया. खुनियाहाट जैसे इलाकों में गोल, घोड़ा और टका खेल जैसे पारंपरिक खेल खेले गए. इस आयोजन में मुस्लिमों के साथ-साथ बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग भी शामिल हुए. उत्तर बंगाल में मुहर्रम पर लोग मजहब और जाति से ऊपर उठकर एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं.
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