Mumbai Train Blast: सबूतों के अभाव में 2006 में हुए मुंबई ट्रेन विस्फोट में दोषी ठहराए गए सभी 12 मुस्लिम आरोपियों को बरी कर दिया गया है. इनमें से एक शख्स की पहले ही मौत हो चुकी है. 19 साल बाद आए इस फैसले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सबूतों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता.
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरीज ब बम धमाके हुए थे. इस मामले में निचली अदालत ने 12 लोगों को दोषी ठहराया था, अब हाई कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया है. इनमें से पांच को मौत की सजा और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इस धमाके में 189 लोगों की जान चली गई थी. जबकि 827 से अधिक यात्री घायल हुए थे.
हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2015 को मकोका (MCOCA) की स्पेशल कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था. जिसे खारिज करते हुए हआई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (Prosecution) कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया जिससे दोष सिद्ध हो सकेय
- अभियोजन यह तक साबित नहीं कर पाया कि धमाकों में किस तरह का विस्फोटक इस्तेमाल हुआ था.
- आरोपियों के कबूलनामों की वैधता संदेह के घेरे में रही.
- बचाव पक्ष की यह दलील स्वीकार की गई कि आरोपियों से कथित कबूलनामे से पहले उन्हें प्रताड़ित किया गया था.
- गवाहों की पहचान में सही प्रोसेस का पालन नहीं हुआ था, और जो गवाह कोर्ट में आरोपियों की पहचान कर रहे थे, उनकी गवाही को अविश्वसनीय माना गया.
बता दें, मामले में विशेष मकोका अदालत ने 2015 में पांच आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी और सात को उम्रकैद दी गई थी. लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि इन सभी आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूत नाकाफी हैं. भारतीय आपराधिक कानून के तहत, किसी भी आरोपी को दी गई फांसी की सजा को लागू करने से पहले उच्च न्यायालय की पुष्टि आवश्यक होती है। इसी प्रक्रिया के तहत बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई हुई थी.
हाई कोर्ट की विशेष पीठ, जिसमें जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस एस.एम. चंदक शामिल थे, ने करीब सात महीने की सुनवाई के बाद 31 जनवरी 2024 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे अब सुनाया गया है.