Muzaffarnagar Riots 2013: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में 2013 में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. इस हिंसा ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इन दंगों में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई थी. जबकि हजारों लोग घायल हो गए थे. इस दंगे के पीड़ित भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में आज कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है जो दंगा पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है. कोर्ट ने 2013 के दंगों से जुड़े एक अहम मामले में आरोपियों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने सबूतों और गवाहों के अभाव का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया है.
दरअसल, वादी जिया-उल-हक के रिश्तेदार का घर दंगाइयों ने जला दिया था. उन्होंने घर में जमकर लूटपाट भी की थी. इसके बाद जिया-उल-हक ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कराया था. दर्ज केस के मुताबिक, दंगे वाले दिन भीड़ उनके घर में घुसी और 8 लाख रुपए नकद, सोने के जेवरात लूटकर घर में आग लगा दी. वहीं, कमरुद्दीन ने जान बचाने के लिए अपने एक रिश्तेदार के घर में शरण ली, जिसकी वजह से उनकी जान बच गई.
इस वजह से किया गया आरोपियों को बरी
वादी जिया-उल-हक के शिकायत के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 436 समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया था और इस मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया था. हालांकि, कोर्ट में मुकदमे के दौरान पर्याप्त गवाह और सबूत पेश नहीं किए जा सके. सरकारी वकील होगिंदर शर्मा ने भी माना कि गवाहों के सामने न आने और साक्ष्यों की कमी के कारण अदालत ने आरोपियों को बरी किया है.
इससे पहले भी हत्या के आरोपियों को कोर्ट ने किया था बरी
इससे पहले, अप्रैल 2024 में मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दौरान 26 लोगों को हत्या से बरी कर दिया गया था और सितंबर 2024 में एक अन्य अदालत ने सबूतों के अभाव में अर्मलज़ामिन को हत्या से बरी कर दिया था. इस फैसले ने शिकायतकर्ताओं और उनके परिवारों को परेशानी में डाल दिया है. गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर दंगों में मुसलमानों के कई घरों में लूटपाट और तोड़फोड़ की गई थी और 22 लोगों की जान चली गई थी और 50,000 लोग बेघर हो गए थे.