Padma Shri Awardee KV Rabiya Death: प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता केवी राबिया का रविवार (4 मई) को केरल के मल्लपुरम में मौत हो गई. केवी राबिया को साक्षरता को बढ़ावा देने के उनके अथक प्रयासों के लिए जाना जाता था. 59 साल की केवी राबिया लंबे समय से कैंसर से जूझ रही थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवी राबिया के निधन पर शोक जताया है. सोशल मीडिया पर पोस्ट संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, "पद्म श्री पुरस्कार विजेता केवी राबिया जी के निधन पर गहरी शोक संवेदनाएं. साक्षरता को बढ़ावा देने में उनका अग्रणी कार्य हमेशा याद किया जाएगा."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में आगे लिखा, "पोलियो से संघर्ष करते हुए उनका साहस और संकल्प भी बेहद प्रेरणादायक था. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं."
Pained by the passing away of Padma Shri awardee, KV Rabiya Ji. Her pioneering work in improving literacy will always be remembered. Her courage and determination, particularly the manner in which she battled polio, was also very inspiring. My thoughts are with her family and…
— Narendra Modi (@narendramodi) May 5, 2025
केवी राबिया की मौत से केरल समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. मलप्पुरम जिले के वेलिकक्कड़ की रहने वाली राबिया ने बचपन से ही मुश्किलों और दुखों का सामना करते हुए विकलांगों की तरक्की के लिए कड़ी मेहनत की. इतना ही नहीं उन्होंने हजारों महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कदम बढ़ाने के लिए हौसलाअफजाई की.
केवी राबिया सिर्फ 12 साल की थीं जब उन्होंने पोलियो से लड़ाई शुरू की. इस बीमारी ने धीरे-धीरे उनके शरीर को चलने-फिरने लायक नहीं छोड़ा, लेकिन उनके हौसले कभी नहीं टूटे. स्कूल की पढ़ाई पूरी की और कॉलेज भी गईं, हालांकि डिग्री पूरी नहीं कर सकीं. केवी राबिया का पूरा नाम करिवप्पिल राबिया (Kariveppil Rabiya) था.
कॉलेज छोड़ने के बाद किताबें उनकी दोस्त बनीं और वह पूरी दुनिया के लिए एक रोल मॉडल बनकर उभरीं. राबिया ने विज्ञान से लेकर साहित्य तक सब कुछ पढ़ डाला. इस बीच जब वे पूरी तरह व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं, तब उन्होंने अपने घर में ही आसपास के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, वो भी बहुत कम फीस में.
इसी दौरान एक संयोग ऐसा हुआ जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. 1980 के दशक के आखिर में शुरू हुआ केरल का साक्षरता अभियान एक नई रफ्तार पकड़ रहा था. इस अभियान से जुड़ने के लिए कॉलेज की डिग्री जरूरी थी, लेकिन एक प्रशिक्षक ने जो आगे काम नहीं कर सका, केवी राबिया से मदद मांगी. यहीं से केवी राबिया का सामाजिक जीवन शुरू हुआ.
पद्म श्री पुरस्कार विजेता केवी राबिया ने जून 1990 में साक्षरता की क्लासेज लेनी शुरू कीं, जिनमें बुजुर्ग और घरेलू महिलाएं पढ़ाई करने आती थीं. केवी राबिया ने रूढ़िवादी सोच वाली महिलाओं को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. पढ़ने आने वाली महिलाओं की हौसलाअफजाई के लिए राबिया उन्हें बड़े नेताओं और समाज सुधारकों की कहानियां सुनातीं, जिससे उनमें सीखने की ललक पैदा हो.
उनकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे छात्रों की संख्या बढ़ने लगे, तो केवी राबिया ने इसे अपना पूरा समय देना शुरू कर दिया. आगे चलकर उन्होंने महिलाओं के लिए एक लाइब्रेरी भी शुरू की और अपने क्षेत्र के तरक्की में अहम किरदार अदा किया. जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज राबिया के नाम पर इलाके में नई सड़कें, बिजली, टेलीफोन कनेक्शन और पीने का पानी सब कुछ आसानी उपलब्ध है.
महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
कुछ समय बाद केवी राबिया ने 'चलनम्' (जिसका मतलब है-Motion) नाम से एक स्वयंसेवी संस्था बनाई, जो साक्षरता कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने लगी. लेकिन उनका काम सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने दिव्यांग (Special Childrens) के लिए 6 स्कूल खोला और एक लघु उद्योग के जरिये 250 से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया.
दहेज और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाने वाले आंदोलनों में भी केवी राबिया ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. बाद में मलप्पुरम में शुरू हुए ई-साक्षरता कार्यक्रम 'अक्षया' में भी उनका योगदान काबिले जिक्र है. साल 2000 में केवी राबिया को कैंसर का पता चला, लेकिन उन्होंने उस मुश्किल दौर को भी पार किया और एक बार फिर समाज सेवा में लौट आईं.
पद्मश्री समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित
केवी राबिया आज भी उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो हालातों से हार मान लेते हैं. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है. व्हीलचेयर पर बैठकर पर उन्होंने निरक्षर महिलाओं और समाज को एक रास्ता दिखाया और तरक्की के नए पैमाने से रुबरू कराया.
केवी राबिया के जरिये समाज की तरक्की के लिए किए गए कामों को पूरी दुनिया ने सराहा. राबिया को 1994 में राष्ट्रीय युवा पुरस्कार और 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उन्होंने साल 2009 में अपनी आत्मकथा 'स्वप्नंगलकु चिरकुकल उंडू' (सपनों के पंख होते हैं) लिखी. इन पुरस्कारों के लिए अलावा समय-समय पर उन्हें अलग-अलग सामाजिक संगठनों, राज्य सरकारों के जरिये कई सम्मान से नवाजा गया.
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