Delhi Riots: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार (1 अप्रैल) को साल 2020 दिल्ली दंगों को लेकर अहम फैसला सुनाया. अदालत ने तात्कालिक भाजपा नेता और दिल्ली सरकार के मौजूदा कानून मंत्री कपिल मिश्रा और अन्य लोगों के खिलाफ दिल्ली दंगों में कथित भूमिका जांच को लेकर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं.
मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने इसे "प्रथम दृष्टया" संज्ञेय अपराध पाया है, इस मामले जांच की जरुरत है. राउज एवेन्यू कोर्ट ने तात्कालिक भाजपा नेता की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा, "यह साफ है कि कपिल मिश्रा कथित अपराध के समय इलाके में मौजूद थे. मामले में आगे जांच की जरुरत है.
बता दें, यमुना विहार निवासी मोहम्मद इलियास ने दिसंबर 2024 में कपिल मिश्रा के साथ 6 अन्य लोगों की भूमिका की जांच करने की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. हालांकि मोहम्मद इलियास की याचिका दिल्ली ने विरोध किया था. दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि सांप्रदायिक हिंसा में कपिल मिश्रा की भूमिका की पहले ही जांच हो चुकी है और उसमें कुछ आपत्तिजनक बात सामने नहीं आई है.
मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक, इस याचिका में दंगों में कथित संलिप्तता के लिए कपिल मिश्रा के साथ ही मुस्तफाबाद विधायक और डिप्टी स्पीकर मोहन सिंह बिष्ट, तत्कालीन डीसीपी (उत्तर पूर्व), दयालपुर पुलिस स्टेशन के तत्कालीन एसएचओ और पूर्व भाजपा विधायक जगदीश प्रधान का नाम भी शामिल किया गया है. इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे.
याचिकाकर्ता मोहम्मद इलियास ने दावा किया कि दंगों के दौरान 23 फरवरी 2020 को उन्होंने कपिल मिश्रा और अन्य आरोपियों को कर्दमपुरी में एक सड़क को जाम करते और सड़क पर लगे ठेलों को नष्ट करते हुए देखा था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उत्तर पूर्व दिल्ली के पूर्व डीसीपी और कुछ अन्य अधिकारी मौके पर कपिल मिश्रा के साथ खड़े थे, जब उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध कर रहे लोगों को धमकी दी थी.
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