Supreme Court on Waqf Case: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अप्रैल) को यह आदेश देने का प्रस्ताव रखा कि "Waqf by User" सहित वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाए, लेकिन केंद्र ने इस सुझाव का विरोध किया और इस तरह के निर्देश से पहले सुनवाई की अपील की. शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्ट का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी. पीठ ने कहा, "अदालतों द्वारा वक्फ के रूप में घोषित संपत्तियों को वक्फ के रूप में गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे Waqf by User हों या विलेख द्वारा वक्फ हों, अगर अदालत वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है."
न्यायालय ने कहा, "वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों (Ex Officio Member) के." प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने पहले इन याचिकाओं को एक उच्च न्यायालय को भेजने पर विचार किया, लेकिन बाद में कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी, राजीव धवन और केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं. पीठ ने अभी तक कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन कहा है कि वह 17 अप्रैल को दोपह करीब दो बजे याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करेगी.
शीर्ष अदालत ने कानून के लागू होने के बाद हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जब वह इन मामलों पर गौर कर रही है तो यह परेशान करने वाली बात है. प्रधान न्यायाधीश ने आगे एक आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि पदेन सदस्यों को उनके धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया कि "Waqf by User" की अनुमति कैसे नहीं दी जा सकती, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ पंजीकृत कराने के लिए अपेक्षित दस्तावेज नहीं होंगे.
"Waqf by User" से तात्पर्य ऐसी प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता उसके ऐसे प्रयोजनों के लिए दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो. पीठ ने कहा, "आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फ को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा. हां, कुछ दुरुपयोग है. लेकिन वास्तविक भी हैं. मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है. Waqf by User को मान्यता दी गई है. अगर आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी. विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती. आप सिर्फ आधार ले सकते हैं."
तुषार मेहता ने हालांकि कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता. पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा, "क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे. इसे खुलकर कहें." सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता था और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था. पीठ ने कहा, "आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते."
कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का प्रभाव पूरे भारत में होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय को नहीं भेजा जाना चाहिए. वक्फ अधिनियम का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि Waqf by User करना इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे छीना नहीं जा सकता.
केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया था, जिसे दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद संसद से पारित होने के पश्चात पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई. राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने मत दिया. वहीं, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 तथा विरोध में 232 वोट पड़े. इस तरह यह दोनों सदनों से पारित हो गया था.
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाओं सहित 72 याचिकाएं अधिनियम की वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई हैं. केंद्र ने आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक ‘कैविएट’ दायर कर मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की अपील की थी. किसी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में यह सुनिश्चित करने के लिए ‘कैविएट’ दायर की जाती है कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.
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