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'गिरफ्तारी नहीं, डिक्शनरी की जरुरत;' महमूदाबाद केस में सुप्रीम कोर्ट ने फिर लगाई SIT को कड़ी को फटकार

Supreme Court on Ali Khan Mahmudabad Case: अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट पर दर्ज एफआईआर पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई. कोर्ट ने एसआईटी को जांच सीमित करने का निर्देश देते हुए कहा कि महमूदबाद की राय को अपराध नहीं कहा जा सकता है.  

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सुप्रीम कोर्ट ने SIT को लगाई फटकार (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने SIT को लगाई फटकार (फाइल फोटो)
Raihan Shahid|Updated: Jul 17, 2025, 08:11 AM IST
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Ali Khan Mahmudabad Social Media Post: अशोका यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अली खान महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 जुलाई) को सुनवाई की. इस दौरान एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को कड़ी फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी अपनी जांच का दायरा बेवजह बढ़ा रही है, जबकि उसे सिर्फ अली खान महमूदबाद के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर तक ही सीमित रहना चाहिए.

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की बेंच कर रही है. बेंच ने अपनी टिप्पणी में कहा,"एसआईटी साफ तौर पर खुद को गुमराह क्यों कर रही है? वे कह सकते हैं कि वह लेख (महमूदबाद की) एक राय है और यह कोई अपराध नहीं है." बेंच ने कहा कि एसआईटी जांच के दायरे को बेवजह बढ़ा रही है. अदालत ने स्पष्ट किया कि जांच सिर्फ दो फेसबुक पोस्ट, पहला पहलगाम आतंकी हमला और दूसरा 'ऑपरेशन सिंदूर' तक ही सीमित रहे.

'जांच टीम को डिक्शनरी की जरूरत'

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू ने एसआईटी को जांच पूरी करने के लिए दो महीने का समय देने का अनुरोध किया, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. जस्टिस कांत ने कहा, "एसआईटी कह सकती है कि इस FIR में कुछ भी नहीं है, लेकिन हम अन्य मुद्दों की जांच कर रहे हैं. इसके लिए दो महीने क्यों? तब यह मामला बंद हो सकता है."

जब सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने कोर्ट से अनुरोध किया कि महमूदबाद को भविष्य में एसआईटी जांच में शामिल होने का निर्देश दिया जाए, तो जस्टिस कांत ने चुटकी लेते हुए कहा, "आपको उनकी जरूरत नहीं है. आपको डिक्शनरी की जरूरत है." यह टिप्पणी महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट की व्याख्या से जुड़ी हुई थी, जिसमें उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' और भारत के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की प्रशंसा की थी. साथ ही युद्ध भड़काने वालों और दक्षिणपंथी समर्थकों की आलोचना भी की थी. 

'पूछताछ के लिए नहीं बुला सकती SIT'

फेसबुक पोस्ट की व्याख्या ही महमूदबाद और अभियोजन पक्ष के बीच विवाद का मुख्य मुद्दा रहा है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने महमूदबाद को फिर से पूछताछ के लिए बुलाने पर रोक लगा दी है और जांच को 4 हफ्तों में पूरा करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एसआईटी को महमूदबाद को फिर से पूछताछ के लिए बुलाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले ही जांच में सहयोग किया था और उनके कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की भी जांच की गई थी.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया अली खान महमूदबाद को मिली गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक जारी रहेगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि महमूदबाद लेख और सोशल मीडिया पोस्ट लिखने के लिए आजाद हैं, सिवाय उन मामलों के जो विचाराधीन (सब-जुडिस) हैं, यानी जो मामले कोर्ट में लंबित हैं. फिलहाल याचिकाकर्ता के खिलाफ अंतरिम आदेश जारी रहेंगे.

क्या है पूरा मामला?

महमूदबाद ने अपने फेसबुक पोस्ट में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आलोचना की थी. युद्ध की निंदा करते हुए उन्होंने सांप्रदायिकता पर भी कटाक्ष करते हुए कहा था कि भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को मिली सराहना जमीन पर भी दिखनी चाहिए. जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के प्रेस ब्रीफिंग की अगुवाई की थी. उन्होंने यह भी कहा था कि भारत में दक्षिणपंथी समर्थकों को मॉब लिंचिंग के खिलाफ बोलना चाहिए. इन्हीं टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई थीं.

दो लोगों ने दर्ज कराई थी एफआईआर

पहला मामला योगेश जाठेरी की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं 196 (नफरत को बढ़ावा देना), 197 (राष्ट्रीय एकता के प्रतिकूल आरोप और दावे), 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालना) और 299 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दर्ज किया गया था.

दूसरी FIR हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया की शिकायत के बाद दर्ज की गई थी. जिसमें BNS की धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव), 79 (लज्जा का अपमान) और 152 के तहत आरोप शामिल थे. अली खान महमूदबाद को बाद में हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

SIT कर रही है जांच

इसके बाद प्रोफेसर अली खान महमूदबाद ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने और एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. जब 19 मई को पहली बार मामले की सुनवाई हुई थी, तो कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के जरिये दर्ज एफआईआर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन महमूदबाद को अंतरिम जमानत पर जेल से रिहा कर दिया था. उस समय कोर्ट ने हरियाणा पुलिस की जगह मामले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन भी किया था. कोर्ट ने उस वक्त महमूदबाद के पोस्ट में इस्तेमाल की गई भाषा पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी, तब कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि इसके दोहरे अर्थ हो सकते हैं.

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