UCC High Court: समान नागरिक संहिता के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या राज्य सरकार नए सिरे से सुझाव आमंत्रित कर सकती है और जहां भी जरूरी हो, वहां बदलावों पर सोच सकती है?
याचिकाकर्ताओं डॉ. उमा भट्ट, कमला पंत और मुनीश कुमार की तरफ से सीनियर एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने यूसीसी के प्रावधानों को चुनौती दी थी. जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेश करना भी शामिल है. ग्रोवर सुधांशु सनवाल और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य नाम की याचिका में लिव-इन जोड़े की तरफ से भी पेश हुई थीं.
जनहित याचिका पर बहस करते हुए ग्रोवर ने कहा कि यूसीसी अधिनियम निगरानी और पुलिसिंग के साथ प्राइवेसी में घुसपैठ करते हैं. उन्होंने कहा, "हर जानकारी... तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन को भेजी जाती है. इस देश में, मेरी जानकारी स्थानीय पुलिस के पास क्यों होनी चाहिए?"
अदालत ने कहा कि पुलिस के जरिए घर पर जाकर किए जाने वाले दौरे को कानूनी उल्लंघन माना जाता है. अदालत ने कहा, "कोई भी पुलिसकर्मी दरवाज़ा नहीं खटखटा सकता. क्या यह ताकत पुलिस को (यूसीसी के तहत) दी गई है?... क्या यूसीसी पुलिस को आपके घर आने का हक देती है?"
ग्रोवर ने कहा कि पुलिस उचित कार्रवाई कर सकती है, और अधिनियम के तहत उचित कार्रवाई परिभाषित नहीं है. कोई भी शख्स जाकर शिकायत दर्ज करा सकता है कि यह व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के रह रहा है. उन्होंने कहा कि महिलाओं से जुड़ी जानकारी कि वह लिव इन खत्म कर रही हैं या फिर वह प्रेग्नेंट हैं बिलकुल निजी है और यह जानकारी पब्लिक ऑफिसर्स और पुलिस के हाथों में नहीं जा सकती. हम ऐसी कंडीशन बनाने जा रहे हैं जहां महिलाओं की हालत बदतर होगी. उन्हें हर दिन सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ेगा."
पीठ ने कहा, "क्या कानून का मसौदा तैयार करते वक्त आपके सुझाव आमंत्रित किए गए थे? श्री एसजी (सॉलिसिटर जनरल), क्या आप नए सिरे से सुझाव आमंत्रित कर सकते हैं? आप जहां भी बदलाव की जरूरत है, उस पर विचार कर सकते हैं और क्या हम इसे शामिल कर सकते हैं? आप राज्य लेजिसलेचर पर जरूरी बदलाव (परिवर्तन) लाने के लिए दबाव डाल सकते हैं."
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे कोई बयान नहीं दे सकते, लेकिन उन्होंने कहा कि वे इसकी जांच करेंगे. लेकिन सुझाव आमंत्रित किए गए थे, और यह कंसलटेशन प्रोसेस के बाद ही पास (बिल) हुआ. हर एक प्रोवीजन का कोई न कोई मदसद होता है. कुल मिलाकर, मकसद एक महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करना है जो आम तौर पर कमज़ोर साथी होती है."
ग्रोवर ने यह भी मांग की कि सॉलिसिटर जनरल यह सुनिश्चित करें कि जिस जोड़े का वह प्रतिनिधित्व कर रही हैं, उनके खिलाफ कोई फोर्सफुल कार्रवाई न की जाए. अदालत ने राज्य सरकार से 1 अप्रैल को जवाब दाखिल करने को कहा है.