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उत्तराखंड विधानसभा में UCC विधेयक पारित, जानें इसकी अहम बातें

Uttarakhad UCC: उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया है. राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद उत्तराखंड देश में पहला राज्य बन जाएगा जिसने UCC लागू किया हो.

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उत्तराखंड विधानसभा में UCC विधेयक पारित, जानें इसकी अहम बातें
Siraj Mahi|Updated: Feb 08, 2024, 08:43 AM IST
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Uttarakhad UCC: उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार को बहुचर्चित समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया. समान नागरिक संहिता विधेयक, उत्तराखंड 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को सदन के पटल पर रखा था जिस पर दो दिनों तक लंबी चर्चा हुई. इस विधेयक को पारित कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया. विधेयक पर चर्चा के आखिर में मुख्यमंत्री ने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए सभी सदस्यों से मिलकर इसे पारित कराने का अनुरोध किया. विधेयक को ध्वनि मत से पारित किया गया.

कानूनों में एकरुपता की कोशिश
विधेयक के पारित होने के दौरान सदन में ‘जय श्रीराम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगे. धामी ने कहा, ‘‘यह विधेयक प्रधानमंत्री जी (नरेन्द्र मोदी) द्वारा देश को विकसित, संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए किए जा रहे महान यज्ञ में हमारे प्रदेश द्वारा अर्पित की गई एक आहुति मात्र है.’’ उन्होंने कहा कि यूसीसी विधेयक के तहत जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित सभी कानूनों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है.

राष्ट्रपति के पास जाएगा
उत्तराखंड विधानसभा आजाद भारत के इतिहास में समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बन गई है. अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी जिसके बाद उत्तराखंड UCC लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने बताया कि यह विधेयक अब राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा जाएगा जिसके बाद ही यह कानून बनेगा. 

अनुसूचित जनजाति विधेयक से बाहर
विधेयक में प्रदेश में रहने वाले सभी धर्म-समुदायों के नागरिकों के लिए विवाह, संपत्ति, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक समान कानून का प्रावधान है. हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस विधेयक की परिधि से बाहर रखा गया है. यूसीसी विधेयक में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए बाल विवाह, बहु विवाह, हलाला, इद्दत जैसी सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक लगाने का प्रावधान है. इसके तहत विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है और ऐसा नहीं करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान है. पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है जबकि सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गयी है.

तलाक लेने का समान अधिकार
वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा. पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा उसकी माता के पास ही रहेगी. सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार होगा. बेटा और बेटी का संपत्ति में समान अधिकार होगा. 

लिव-इन से पैदा बच्चा होगा वैध
संपत्ति में अधिकार के लिए वैवाहिक और लिव-इन से पैदा बच्चों में भेदभाव को समाप्त करते हुए हर बच्चे को ‘वैध’ बच्चा माना जाएगा. लिव-इन का पंजीकरण भी अनिवार्य होगा. इससे पहले, विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा)के सदस्यों ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति व्यक्त करते हुए उसे सदन की प्रवर समिति को सौंपने की मांग की थी. 

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