Uyghurs Genocide in Xinjiang: चीन एक तरफ खुद को वैश्विक शक्ति कहलवाना चाहता है, लेकिन दूसरी तरफ अपने ही देश के उइगर मुस्लिमों पर जुल्म की इंतहा कर रहा है. मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाते हुए चीन ने बीते एक दशक में शिनजियांग प्रांत को एक 'ओपन-एयर जेल' में बदल दिया है, जहां मजहब, आजादी और इंसानियत तीनों को बेरहमी से कुचला जा रहा है.
बीते दस सालों में चीन ने उइगर मुसलमानों के खिलाफ अपने दमन की नीति को तेज कर दिया है. शिनजियांग यानी ईस्ट तुर्किस्तान में रहने वाले तुर्की मूल के मुस्लिम समुदाय को जबरन डिटेंशन कैंपों में रखा जा रहा है. अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 से अब तक करीब 20 लाख उइगर लोगों को इन कैंपों में डाला गया है, जहां उनसे उनकी आस्था छुड़वाई जाती है, राजनीतिक विचार थोपे जाते हैं और टॉर्चर कर उनके अंग निकाले जाने जैसी अमानवीय घटनाएं भी होती हैं.
संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने इन घटनाओं को 'मानवता के खिलाफ अपराध' करार दिया है, जबकि अमेरिका समेत कई देशों ने इसे सीधा तौर पर उइगर मुसलमानों का नरसंहार (Genocide) माना है. डिटेंशन कैंपों में बंद किए गए उइगरों में से जो कुछ लोग किसी तरह बाहर निकल भी पाते हैं, उन्हें फिर जबरन मजदूरी के जाल में फंसा दिया जाता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन सरकार की ये योजनाएं दो तरीकों से काम करती हैं. पहला, डिटेंशन कैंप में बंद कैदियों से जबरन फैक्ट्रियों में मजदूरी करवाई जाती है. दूसरा, "गरीबी हटाओ" जैसी योजनाओं के नाम पर उइगरों को जबरन चीन के दूसरे हिस्सों में भेज दिया जाता है, जहां उन्हें खेतों और उद्योगों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.
इस पूरी प्रक्रिया का मकसद साफ है, डर और दमन के जरिए उइगरों की संस्कृति, भाषा और पहचान को मिटाना. चीन का शिनजियांग प्रांत वैश्विक सप्लाई चेन का एक अहम केंद्र बन चुका है. दुनिया का करीब 20 फीसदी कपास, 25 फीसदी टमाटर, 45 फीसदी सोलर पॉलिसिलिकॉन और 9 फीसदी एल्यूमिनियम यहीं से आता है. यही वजह है कि जबरन मजदूरी से तैयार किए गए ये उत्पाद अमेरिका समेत दुनियाभर में कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाने के पैकेट्स और यहां तक कि सरकारी सहायता कार्यक्रमों तक में पहुंच रहे हैं.
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए अमेरिका ने 2021 में 'उइगर फोर्स्ड लेबर प्रिवेंशन एक्ट'(UFLPA) कानून बनाया. इसके तहत शिनजियांग से आने वाले हर सामान को तब तक जबरन मजदूरी से जुड़ा माना जाता है, जब तक कि कंपनियां इसका उल्टा साबित न कर दें. इस कानून के लागू होने के बाद जून 2022 से अब तक अमेरिकी सीमा अधिकारियों ने 3.69 अरब डॉलर (करीब 30 हजार करोड़ रुपये) का सामान जब्त कर लिया है और एक अरब डॉलर से ज्यादा के आयात को ब्लॉक किया है.
इसके अलावा 144 कंपनियों को ब्लैकलिस्ट भी किया है. हालांकि, अटलांटिक काउंसिल ने आगाह किया है कि अगर अमेरिका ने इन कोशिशों को जारी नहीं रखा, तो चीन एक बार फिर अपनी चालों से दुनिया को धोखा दे सकता है. जानकारों की मानें तो ट्रंप सरकार में जो 'De Minimis Exemption' खत्म की गई थी, वह एक सही कदम था. ऐसे में अगर अमेरिका अपने सहयोगी देशों पर टैरिफ बढ़ाता है तो कंपनियां फिर चीन की सस्ती लेकिन शोषण आधारित सप्लाई चेन की तरफ लौट सकती हैं.