Terrorist Group in Bangladesh: भारत सरकार की नजर अब एक ऐसे उभरते इस्लामी संगठन पर है, जो न सिर्फ क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है बल्कि भारत की संप्रभुता पर भी सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. यह संगठन है "सल्तनत-ए-बांग्ला", जो बांग्लादेश की राजधानी ढाका से संचालित होता है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस समूह को लेकर राज्यसभा में एक अहम बयान दिया है. उन्होंने बताया कि इस संगठन को तुर्की के एक गैर-सरकारी संगठन 'टर्किश यूथ फेडरेशन' की हिमायत हासिल है. विदेश मंत्री ने यह जानकारी राज्यसभा में पूछे गए कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के तारांकित प्रश्न के लिखित उत्तर में दी.
जयशंकर के मुताबिक, यह समूह एक "ग्रेटर बांग्लादेश" की तसव्वुर को बढ़ावा दे रहा है. इस विचारधारा के तहत उन्होंने एक नक्शा भी जारी किया है, जिसमें भारत के कुछ इलाकों को भी शामिल दिखाया गया है. सरकार इस पूरे मामले को गंभीरता से ले रही है और इस तरह की किसी भी साजिश को नाकाम बनाने के लिए सतर्क है.
सल्तनत-ए-बांग्ला नाम के संगठन ने इस साल की शुरुआत में शाहबाग स्थित ढाका यूनिवर्सिटी के टीचर्स स्टूडेंट्स सेंटर में आयोजित एक प्रोग्राम में ग्रेटर बांग्लादेश का नक्शा जारी किया था. यह प्रतिष्ठित संस्थान अब इस अलगाववादी समूह का अस्थायी हेडक्वार्टर है. खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों ने बताया कि यह ग्रुप कट्टरपंथी नजरिये को दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रहा है और बांग्लादेश में नौजवानों को, खासकर उन नौजवानों को जो एक ग्रेटर बांग्लादेश के निर्माण के पक्ष में हैं, लामबंद कर रहा है.
यह संगठन काफी लंबे वक्त से मध्यकालीन बंगाल सल्तनत की विरासत की बात कर रहा है. ग्रुप के जरिये जारी तथाकथित ग्रेटर बांग्लादेश के विवादास्पद मानचित्र में म्यांमार का अराकान और जबकि भारत का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल है, जिसमें पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, असम, बिहार, ओडिशा और दूसरे नार्थ ईस्ट स्टेट शामिल हैं. सल्तनत-ए-बांग्ला का नाम बंगाल सल्तनत से लिया गया है, जो एक स्वतंत्र मुस्लिम शासित राज्य था. इस पर 1352 और 1538 ई. के बीच शासन किया गया था.
सल्तनत के तहत वर्तमान पूर्वी भारत और बांग्लादेश के कुछ हिस्से आते थे. भारतीय एजेंसियों को इस बात की ज्यादा चिंता है कि यह समूह बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के साथ कितना करीब है. अधिकारियों को पता चला है कि इस संगठन को मिलने वाला पैसा दीना अफरोज यूनुस से जुड़ा है, जो मुहम्मद यूनुस की बेटी है. दीना अफरोज कथित तौर पर बेलियाघाटा, उपजिला स्थित एक गैर-सरकारी संगठन, सीएसएस-बांग्लादेश की मुख्य फंडिंगकर्ता है.
इस एनजीओ की पहचान संगठन की शाखा बरवाह-ए-बंगाल के लिए रसद और भर्ती केंद्र के रूप में की गई है. यह उप-समूह बांग्लादेश के नौजवानों की भर्ती और उन्हें अपने विचारों से प्रभावित करने का काम करता है. सल्तनत-ए-बांग्ला के संचालन को तुर्की युवा संघ के जरिये लगातार मदद दी जाती है. यह गैर-सरकारी संगठन समूह को वित्तीय और वैचारिक मदद पहुंचाता है. इस ग्रुप का उभार ऐसे समय में हुआ है, जब बांग्लादेश में भारी अनिश्चितता का माहौल है. यूनुस सरकार पर कट्टरपंथी इस्लामी समूहों से मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं. उनके शासनकाल में जमात-ए-इस्लामी काफी मजबूत होती जा रही है.
यूनुस के सत्ता संभालने के बाद जमात पर से बैन हटा लिया गया था, लेकिन उन्होंने इसके सदस्यों को अंतरिम सरकार का हिस्सा बनने और फैसले लेने की इजाजत दे दी है. इसके अलावा यूनुस के अगुवाई में पाकिस्तान बांग्लादेश में भी अपनी पकड़ बनाए हुए है. पाकिस्तानी अधिकारियों के लिए वीजा नियमों में ढील दी गई है और इस्लामाबाद के लिए समुद्री मार्ग भी खोल दिया गया है.
इस तरह के घटनाक्रमों से भारतीय सरकार और सुरक्षा एजेंसियां सल्तनत-ए-बांग्ला और उसके उदय को लेकर फिक्रमंद हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, "सरकार ने उन रिपोर्टों पर ध्यान दिया है कि ढाका में 'सल्तनत-ए-बांग्ला नाम का एक इस्लामी ग्रुप ने तथाकथित 'ग्रेटर बांग्लादेश' का एक नक्शा जारी किया है, जिसमें भारत के कुछ हिस्से शामिल हैं. यह नक्शा ढाका यूनिवर्सिटी में पेश किया गया."