Iran Israel War Update: बेंजामिन नेतन्याहू के एक फैसले ने मध्य पूर्व को युद्ध में धकेल दिया है. बीते दिनों परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाते हुए इजराइल ने तेहरान में कई अहम जगहों पर हमला कर दिया, इसके जवाब में ईरान ने इजराइल पर मिजाइलों से जवाबी कार्रवाई की. ईरानी पलटवार देखकर इजराइल और उसके समर्थक देशों में हड़कंप मच गया. इससे पहले भी इजराइल कई बार ईरान में हमला कर चुका है.
इजराइल और ईरान में कट्टर दुश्मनी सालों पुरानी है. ईरान के लिए परमाणु हथियार बनाने वाले साइंटिस्टों और आईआरजीसी के बड़े अधिकारियों पर मोसाद हमले करते रही है, जिसमें कई लोग मारे गए हैं. इसके जवाब में ईरान अपने प्रॉक्सी के जरिये यहूदी देश पर हमले करता रहा है और इजराइल को खत्म करने की धमकी देता रहा है. मध्य पूर्व में इजराइल और अमेरिका के एकाधिकार को लगातार ईरान से चुनौती मिलती रही है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ईरान और इजराइल में शांति समझौता हो सकता है, जिससे मध्य पूर्व में लंबे समय तक शांति बनी रही है. ईरान और इजराइल में हमेशा कट्टर दुश्मनी रही हो, ऐसा नहीं है. कभी यह दोनों दोस्त एक दूसरे के गहरे दोस्त थे. दरअसल, ईरान की 1979 की इस्लामिक क्रांति तक इजराइल और ईरान में गहरे दोस्ती थी.
फिलिस्तानी के एक भू-भाग में पर 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद मध्य पूर्व में क्षेत्रीय विवाद शुरू हो गया. इसकी वजह यह है कि इजराइल की स्थापना के बाद फिलिस्तीनी भू-भाग पर उसका लगातार जबरन अवैध विस्तार कर यहूदी कॉलोनी बसाना. इसके लिए इजराइली पुलिस और सेना लगातार फिलिस्तीनियों को निशाना बनाती रही, इस जुल्म के खिलाफ फिलिस्तीनियों में अंसतोष बढ़ता गया.
इजराइली की स्थापना काफी विवादित रही, शुरुआत में इसको कई देशों ने मान्यता नहीं दी लेकिन ईरान उसे मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में से एक था. इजराइल, अरब देशों के खिलाफ ईरान को अपना सहयोगी मानता था, जबकि ईरान ने अमेरिका समर्थित इजराइल का स्वागत क्षेत्र के अरब देशों के खिलाफ एक संतुलन के रूप में किया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय इजराइल ने ईरानी कृषि विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया, तकनीकी जानकारी शेयर की और ईरानी सशस्त्र बलों के निर्माण और ट्रेनिंग में मदद की. अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन की जरुरतों को देखते हुए ईरानी शाह ने इजराइल को तेल के बदले भुगतान किया. इतना ही नहीं ईरान इजराइल के बाहर दूसरा सबसे बड़ा यहूदी समुदाय का घर था. हालांकि, इस्लामिक क्रांति के बाद कई यहूदियों ने देश छोड़ दिया. इसके बावजूद आज भी 20 हजार से अधिक यहूदी ईरान में रहते हैं.
साल 1979 तक ईरानी शाह मोहम्मद रजा पहलवी के खिलाफ अवाम का गुस्सा फूट पड़ा और पूरे देश में विरोध शुरू हो गया, नतीजतन ईरानी शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा. ईरान इस्लामिक क्रांति के बाद अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी की देश में वापसी हुई और उनके धार्मिक क्रांतिकारी वाली सरकार सत्ता में आई. ईरान की नई सरकार ने इजराइल के साथ हुए सभी पिछले समझौतों को रद्द कर दिया. अयातुल्लाह खुमैनी ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जे के लिए इजराइल की कड़ी आलोचना की.
मध्य पूर्व के हालात को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि धीरे-धीरे ही सही ईरान ने क्षेत्रीय अरब देशों या कम से कम उनके नागरिकों का समर्थन हासिल करने के मकसद से इजराइल के खिलाफ बयानबाजी तेज कर दी. कुछ लोगों का मानना है कि ईरान की इस्लामिक गणतंत्र वाली सरकार मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थी, इसके लिए फिलिस्तीनियों का समर्थन और इजराइली क्रूरता की मुखालिफत जरुरी थी.
जब 1982 में इजराइल ने लेबनान के गृहयुद्ध में दखदअंदाजी करने के लिए दक्षिणी लेबनान में सेना भेजी, तो खुमैनी ने स्थानीय शिया मिलिशिया का समर्थन करने के लिए ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड को लेबनान की राजधानी बेरूत भेज दी. इसी समर्थन से हिज्बुल्लाह मिलिशिया का उदय हुआ, जिसे आज भी लेबनान में सीधे ईरानी प्रॉक्सी के रूप में देखा जाता है.
ईरान के करंट सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई का रुख भी इजराइल के प्रति सख्त रहा. वह लगातार फिलिस्तीन और दूसरे अरब देशों में इजराइली अत्याचार और जबरन कब्जे के खिलाफ जोरशोर से आवाज उठाते रहे हैं. इतना ही नहीं अयातुल्ला अली खामेनेई और पूरा ईरानी नेतृत्व बार- बार होलोकॉस्ट पर सवाल उठाते रहे हैं और इसको सिरे से नकारते रहे हैं.
ईरान को सभी इजराइली और इजराइल को सभी ईरानी अपना दुश्मन नहीं मानते हैं. कई मौकों पर इसकी नजीर भी देखने को मिली. पूर्व ईरानी राष्ट्रपति अली अकबर हाशेमी रफसंजानी की बेटी फैजै हाशेमी रफसंजानी ने 2021 में दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि "ईरान को इजराइल के साथ अपने रिश्तों पर दोबारा नजरसानी की जरुरत है, क्योंकि उसका रुख अब समय के मुताबिक नहीं है."
फैजे हाशेमी रफसंजानी ने कहा कि चीन में मुस्लिम उइगर और रूस में चेचन मुस्लिम उत्पीड़ित हैं, फिर भी ईरान का दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. बता दें, फैजे हाशेमी रफसंजानी ईरानी संसद की सदस्य भी रह चुकी हैं.
हालांकि, ईरान के इस्लामिक गणराज्य के कट्टर समर्थक इजराइल के खिलाफ शत्रुतापूर्ण नीति का समर्थन करते हैं और दुनिया की बड़ी शक्तियों का विरोध करने के समर्थक हैं. विश्लेषक अली फतहोल्लाह-नेजाद ने अप्रैल 2024 में एक बात कही थी. उन्होंने कहा कि ईरान के कुछ समर्थक और 'प्रतिरोध की धुरी' नाराज है. वे नाराज इसलिए हैं क्योंकि ईरान गाजा युद्ध में इजराइल पर हमला करने से बच रहा है. साथ ही ईरान अपने ऊपर हुए हमलों का बदला भी नहीं ले रहा है.
बर्लिन में एक थिंक टैंक 'सेंटर फॉर मिडिल ईस्ट एंड ग्लोबल ऑर्डर' के निदेशक ने बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा कि लोगों में निराशा बढ़ रही है. इसकी वजह है "फ़िलिस्तीन के लिए ईरान की विश्वसनीयता में कमी." लोग सोचते हैं कि ईरान, फिलिस्तीन का बड़ा समर्थक होने के बावजूद इजराइल का सीधे सामना करने में हिचकिचा रहा है.