नख़्ल-ए-इस्लाम नमूना है बिरौ-मंदी का,
फल है ये सैकड़ों सदियों की चमन-बंदी का!
मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने इस नज्म को इस्लाम की तारीफ और उसकी तरक्की को ध्यान में रखकर लिखी थी, जिसका मतलब है, इस्लाम तरक्की, और कामयाबी का एक जीता-जागता आदर्श उदाहरण है, लेकिन यह कोई अचानक हासिल हुई चीज नहीं है, बल्कि यह सैकड़ों सदियों से लगातार की गई मेहनत और कुर्बानियों का फल है.
अल्लामा इकबाल का यह शेर वर्तमान की परिस्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है. अरब के रेगिस्तानों में तेल की खोज के बाद दुनिया भर में इस्लाम और उसके अनुयायियों की छवि को नकारात्मक ढंग से पेश करने की पश्चिमी जगत में होड़ मच गई, जो अभी तक जारी है. इस्लाम और मुसलमानों को लेकर पश्चिमी मीडिया के जरिये लगातार दुष्प्रचार किया गया. खासकर 9/11 की घटना के बाद दुनिया के हर कोने में मुसलमानों को संदेह की नजरों से देखा जाने लगा और इसमें मीडिया ने महती भूमिका निभाई.
इस्लाम और मुसलमानों को आतंकवाद, चरमपंथ, हिंसा, महिला विरोधी और तीसरी दुनिया का निवासी बताकर निशाना बनाया जाने लगा. हालांकि, इसकी जड़ें कई साल पहले ओरिएंटलिज़्म से जुड़ती हैं, जिसका मशहूर लेखक एडवर्ड सईद ने अपनी किताब 'कवरिंग इस्लाम' में जिक्र किया है.
लगातार दुष्प्रचार के बावजूद बीते दशकों में इस्लाम धर्म के मानने वालों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है. प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे धर्मों के मुकाबले इस्लाम धर्म को छोड़ने वालों की संख्या सबसे कम है. बीते एक दशकों में इस्लाम की नकारात्मक छवि पेश करने और आतंकवाद का लेबल लगाने के बावजूद दुनिया भर में मुसलमानों की संख्या में 2010 से 2020 के दरम्यान 1.8 फीसदी बढ़ी है.
हालिया शोध से जाहिर है, वैश्विक स्तर पर मुसलमानों की आबादी न सिर्फ तेजी से बढ़ी है, बल्कि यह अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन चुका है. सिर्फ बीते दशक में मुस्लिमों की आबादी में 21 फीसदी की काबिले जिक्र इजाफा दर्ज किया गया है, जिससे यह आंकड़ा 170 करोड़ से बढ़कर 200 करोड़ के पार पहुंच गया है. अब कुल वैश्विक जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 24 फीसदी से बढ़कर 26 फीसदी हो गई है
इस्लामोफोबिया के शिकार लोगों मुसलमानों को ज्यादा बच्चे पैदा करने और बढ़ती आबादी के लिए जिम्मेदार बताते रहे हैं. हालांकि, प्यू रिपोर्ट इन पूर्वाग्रह से ग्रसित विचारों को दरकिनार करता है. दुनिया भर में मुसलमानों की आबादी जिन इलाकों में तेजी से बढ़ी है, वहां प्रजनन क्षमता के अलावा दूसरे धर्म के मानने वालों का इस्लाम की परंपराओं के प्रति आकर्षण और इस्लाम के अनुयायियों का धर्म बदलने की सबसे कम दर महत्वपूर्ण है.
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े धर्म समूह ईसाईयों में बीते एक दशकों में सबसे ज्यादा धर्मांतरण हुआ है. कभी ईसाईयत का गढ़ रहे यूरोप में सबसे अधिक लोगों ने ईसाई धर्म को छोड़कर इस्लाम धर्म में शामिल हो गए हैं या फिर नास्तिक हो गए हैं.
प्यू रिसर्च सेंटर के जरिये 2,700 से ज्यादा जनगणना और सर्वे के विश्लेषण से इस नतीजे पर पहुंचा कि पूरी दुनिया में तेजी से इजाफा हुआ है और बौद्ध धर्म को छोड़कर लगभग सभी धर्मों के अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इस दौरान मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ी है. सिर्फ एक दशक में मुसलमानों की संख्या में कुल 34.7 करोड़ (347 मिलियन) का इजाफा हुआ है, जो वैश्विक धर्मों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. वैश्विक आबादी में इस्लाम के अनुयायियों की 1.8 फीसदी बढ़कर 25.6 फीसदी पर पहुंच गई है.
प्यू रिसर्च टीम के प्रमुखों में से कॉनराड हैकेट के मुताबिक, आने वाले सालों में ईसाईयत और इस्लाम धर्म के मानने वालों में धर्मांतरण को लेकर होड़ जारी रहेगी. इस्लाम प्रति वैश्विक रुझानों को देखकर उम्मीद है कि जल्द ही दुनिया में सबसे ज्यादा इसके अनुयायी होंगे. रिसर्च में कहा गया है कि ईसाई समुदाय अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह है, लेकिन 2010 से 2020 के बीच उनकी जनसंख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ पाई, जिस अनुपात में कुल वैश्विक आबादी बढ़ी.
भारत की बहुसंख्यक हिंदु आबादी में भी इजाफा
दूसरी ओर दुनियाभर में गैर-मुस्लिम आबादी सिर्फ 9.7 फीसदी बढ़ी है. यहूदी की जनसंख्या में मामूली बढ़ोतरी या कहें स्थिर रही तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस दौरान भारत की बहुसंख्यक हिंदु आबादी दुनिया भर 2010 से 2020 के बीच 12 फीसदी बढ़ी है. यह 1.1 बिलियन से बढ़कर 1.2 बिलियन हो गई है. साल 2050 तक हिंदुओं की संख्या 1.4 बिलियन होने का अनुमान है. वैश्विक आबादी का 15.1 फीसदी जनसंख्या हिंदू है और तेजी से बढ़ता प्रजनन दर इसकी आबादी में इजाफे के सबसे अहम वजहों में से एक है.
2010 से 2020 के बीच सभी भौगोलिक क्षेत्रों में मुसलमानों की संख्या बढ़ी है, हालांकि यह इजाफा अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग स्तर पर दर्ज की गई है. उत्तरी अमेरिका में मुस्लिम जनसंख्या में सबसे अधिक बढ़ोतरी देखी गई, यहां 52 फीसदी बढ़ोतरी के साथ साल 2020 में मुस्लिम आबादी 59 लाख तक पहुंच गई।. इसके बाद उप-सहारा अफ्रीका का स्थान आता है, जहां मुस्लिम आबादी 34 फीसदी के इजाफे के साथ 36.9 करोड़ पर पहुंच गई.
अमेरिका, चीन और यूरोप में दूसरे धर्मों की आबादी तेजी से घटी है, जबकि किसी धर्म को न मानने वाले यानी नास्तिकों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इन देशों में मुस्लिम का रुझान दूसरे धर्म के प्रति लगभग न के बराबर रहा है. यूरोप, अमेरिका के साथ चीन में लगातार उईगर मुसलमानों के खिलाफ हो रहे भेदभाव और हिंसा की खबर सामने आती रही है. यहां के मुसलमानों को अक्सर इस्लामोफोबिया का शिकार होना पड़ता है. इसके बावजूद इन देशों में इस्लाम के मानने वालों की संख्या बढ़ी है और प्रजनन दर के अलावा इसकी परंपराओं और तालीम को माना जाता है. यूरोप में 0.7 फीसदी से आबादी मुस्लिम 6 फीसदी पर पहुंच गई है.
दुनिया के लगभग एक-तिहाई मुस्लिम आबादी इंडोनेशिया, पाकिस्तान और भारत में रहती है. 2020 के आंकड़ों के अनुसार, इंडोनेशिया लगभग 24 करोड़ मुसलमानों के साथ सबसे आगे है, जो दुनिया के कुल मुसलमानों की आबादी का लगभग 12 फीसदी है. दुनिया के शीर्ष 10 देशों में कुल मिलाकर लगभग 1.3 अरब मुसलमान रहते हैं, जो पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी का 65 फीसदी है. इन 10 देशों में से 9 में इस्लाम बहुसंख्यक धर्म है, जिसमें भारत एक अपवाद है.
हालिया कुछ सालों में भारत में भी देश के सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहा है. कई वजहों से मुसलमानों पर हिंसक हमले हो रहे हैं. फिर भी देश के कई इलाकों में इस्लाम के अनुयायियों की संख्या बढ़ी है. साल 2020 में भारत में 21.3 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या थी, पूरे देश की कुल जनसंख्या का सिर्फ 15 फीसदी है.
कुछ देशों में मुस्लिम आबादी के महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है. कजाकिस्तान, बेनिन और लेबनान में मुस्लिम आबादी का कम से कम 5 फीसदी बढ़ी है, जबकि तंजानिया और ओमान में यह घटी है. यूरोप में मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़ने की वजह आप्रवासन (इमिग्रेशन) भी बताया जा रहा है. जैसे सीरिया, फिलिस्तीन समेत कई युद्धग्रस्त देशों के लोग यूरोप पहुंचे. इसकी वजह से स्वीडन में 4 फीसदी, ऑस्ट्रिया में 3 फीसदी और जर्मनी में 1 फीसदी मुस्लिम आबादी हो गई है.
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