Afghan Refugees in Pakistan: अफगानिस्तान में युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से बचने के लिए अफगानी पाकिस्तान आए थे. तालिबान की वापसी के बाद भी अफगानिस्तानी लोग पाकिस्तान से वापस नहीं जाना चाहते और यहीं अपना जीवन बिताना चाहते हैं. लेकिन पाकिस्तान उन्हें देश से निकालने पर तुला हुआ है और पाकिस्तानी सरकार किसी भी कीमत पर सभी अफगानिस्तानी को जल्द से जल्द बाहर निकालना चाहती है. सरकार के इस कदम का हर तरफ़ विरोध हो रहा है. इसी विरोध के चलते अब पाकिस्तान ने लाखों अफ़ग़ानियों को देश से बाहर निकालने की समयसीमा बढ़ा दी है. अब 1 सितंबर तक का समय दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, पाकिस्तान में लगभग 14 लाख अफगान शरणार्थी पंजीकृत हैं, जिनके पास पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र हैं लेकिन 30 जून के बाद ये कार्ड दोबारा जारी नहीं किए गए, जिसके कारण इन शरणार्थियों को कानूनी तौर पर "अवैध" माना जाता है. कई मानवाधिकार संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है. अब पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को 4 अगस्त से लेकर 31 अगस्त का वक्त दिया है. इसका मतलब साफ है कि इस समय सीमा के दौरान अफगान शरणार्थियों को अपनी मर्ज़ी से अफगानिस्तान लौटने का मौका दिया गया है. सरकार का कहना है कि अगर कोई खुद से जाना चाहता है तो वो इस समय सीमा के भीतर चला जाए.
'उम्माह' वाले दावें हैं खोखले
पाकिस्तान के सरकार के इस फैसले के बाद शहबाज शरीफ पर सवाल खड़े हो रहे हैं. पाकिस्तान खुद को इस्लामी देश कहता है और दुनियाभर में मुस्लिम एकता और उम्माह की बात करता है. लेकिन जब लाखों लोग अफ़ग़ानिस्तान जैसे पड़ोसी मुस्लिम देश से परेशान होकर शरण लेते हैं, तो क्या उनके साथ ऐसा व्यवहार इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप है? आइए जानते हैं.
इस्लाम का अनादर कर रहा है पाकिस्तान
दरअसल, इस्लाम में असहायों की मदद करना सबसे बड़ा नेक काम माना जाता है. हिजरत की परंपरा खुद पैगंबर मुहम्मद (SAW) के समय से चली आ रही है. लेकिन अफ़ग़ान शरणार्थियों को जबरन वापस भेजना, उन्हें डराना-धमकाना और उनकी पहचान मिटाना इस्लामी सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन है.
12 लाख अफगानियों को भगा दिया है पाकिस्तान
वहीं, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) ने पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना की है. उनका कहना है कि जबरन निर्वासन "गैर-वापसी" के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत का उल्लंघन है. यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे देश में नहीं भेजा जाना चाहिए जहां उसकी जान या आज़ादी खतरे में हो. यूएनएचसीआर के पाकिस्तान प्रतिनिधि कैसर अफरीदी ने भी कहा है कि एजेंसी लगातार पाकिस्तान से पीओआर कार्ड की वैधता बढ़ाने की मांग कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2025 तक अब तक 12 लाख से ज़्यादा अफ़ग़ान नागरिकों को ईरान और पाकिस्तान से जबरन अपने देश लौटने के लिए मजबूर किया जा चुका है.