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पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों का टूटा सब्र का बांध, सड़क पर उतरे हजारों लोग; सरकार से की बड़ी डिमांड

Pakistan News: पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अधिकार मार्च 2025 के दौरान जबरन धर्म परिवर्तन, स्कूल में भेदभाव और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दे उठाए गए. प्रदर्शनकारियों ने समानता, संवैधानिक सुधार और धार्मिक सहिष्णुता की मांग की. पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें.

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पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों का टूटा सब्र का बांध, सड़क पर उतरे हजारों लोग; सरकार से की बड़ी डिमांड
Zee Salaam Web Desk|Updated: Aug 11, 2025, 05:25 PM IST
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Pakistan News: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और जबरन धर्मांतरण की घटनाएं सालों से होती रही हैं. यह घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इस घटना के कारण पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों ने भेदभाव और जबरन धर्म परिवर्तन को खत्म करने के लिए कराची में मार्च निकाला गया. इस मार्च का नाम "अल्पसंख्यक अधिकार मार्च 2025" रखा गया है. इस मार्च में बड़ी संख्या में हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों ने हिस्सा लिया. यह मार्च कराची के वाईएमसीए परिसर से सिंध विधानसभा भवन तक निकाला गया. मार्च में हिस्सा में लेने वालों ने पाकिस्तान से 11 अहम मांगे रखीं, जिसका मकसद पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को बराबरी का दर्जा दिलाना और उनकी रक्षा करना है.

दरअसल, पाकिस्तान में नाबालिग लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप लग रहे हैं और अल्पसंख्यक समुदाय इसको लेकर चिंतित और डरा हुआ है. अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं ने नाबालिग लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और विवाह को लेकर नाराजगी जाहिर की है. एक कार्यकर्ता ल्यूक विक्टर ने कहा, "पाकिस्तान को आजाद हुए 78 साल हो गए हैं, लेकिन अल्पसंख्यक अभी भी सुरक्षित और आजाद महसूस नहीं करते." 

उन्होंने कहा, "हमारी जवान बेटियों का अपहरण कर उनका जबरन धर्मांतरण और निकाह किया जाता है. हमें समानता नहीं मिलती और हमें अपमानजनक नामों से पुकारा जाता है. हम भी इस देश के समान नागरिक हैं." एक दूसरे कार्यकर्ता फकीर शिवा कच्छी ने कहा, "पाकिस्तान में भले ही बाल विवाह के खिलाफ कानून बना है, लेकिन गैर-मुस्लिम लड़कियों को इसका लाभ नहीं मिलता. जबरन धर्मांतरण के मामलों में पुलिस और प्रशासन आंखें मूंद लेते हैं."

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ शिक्षा और नौकरी में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. नाथन दानयाल नाम के एक शख्स ने कहा,  "पाकिस्तान में कई नामी स्कूल ईसाइयों, पारसियों और हिंदुओं ने शुरू किए, लेकिन आज वहां अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या बहुत कम है." उन्होंने मांग की कि इन स्कूलों में कम से कम 10 फीसद सीटें गरीब अल्पसंख्यक छात्रों के लिए रिजर्व की जाएं.

नौकरी में भी होता है भेदभाव
सफीना गिल ने नौकरी में भेदभाव और कोटा व्यवस्था पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे गैर-मुस्लिमों को भी अक्सर सफाई कर्मचारी की नौकरियों तक सीमित कर दिया जाता है. उन्होंने याद दिलाया कि 2009 में लागू किया गया 5 फीसद नौकरी कोटा अब कमजोर पड़ गया है. वहीं, पादरी नाओमी बशीर ने बताया कि देश में 9 लाख नर्सों की ज़रूरत है, लेकिन सरकारी क्षेत्र में नर्सों की हालत बेहद खराब है. उन्होंने कहा कि नर्सें कई सालों तक एक ही पद पर अटकी रहती हैं और उन्हें सम्मान या तरक्की नहीं मिलती. उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार और नर्सों के लिए बेहतर अवसरों की मांग की.

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