Hajj and Eid ul Azha 2025: साल 2025 के हज की शुरुआत बुधवार से शुरू हो चुकी है. इस बार दुनिया भर से लगभग 25 लाख अकीदतमंद हज करने सऊदी अरब की सरज़मीन पर पहुंचे हैं. पांच दिनों तक चलने वाली हज की पूरी प्रक्रिया बकरीद की आखिरी तारीख को ख़त्म हो जाती है. इसमें ख़ास बात ये है कि हज के सफ़र पर जाने वाले सभी हज यात्रियों को लाजिमी तौर पर जानवरों की कुर्बानी देनी होती है. यानी अगर इस साल अगर 25 लाख अकीदतमंद हज करने सऊदी अरब पहुंचे हैं, तो लगभग 25 लाख जानवरों की क़ुरबानी भी उन्हें देनी होगी.
कुर्बानी देने का ये अमल हर साल होता है. तीन दिनों में कुर्बानी से लगभग 60- 70 लाख टन मांस का उत्पादन हो जाता है. तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतने जानवरों का मांस सऊदी अरब क्या करता है? उनके कहाँ खपाता है?
हज के दौरान 12 से 16 लाख जानवरों की कुर्बानी
दरअसल, सऊदी अरब में बकरा, भेंड़, ऊंट, गौ वंश और दुम्बा (बकरी का एक लोकल नस्ल, जिसके पीछे के हिस्से में मांस लटका होता है) की कुर्बानी देने का चलन है. बकरा, भेंड़ और दुम्बा जैसे छोटे जानवर हों तो एक आदमी की तरफ से एक जानवर की कुर्बानी दी जाती है, जबकि गौवंश और ऊँट जैसे बड़े जानवर हों तो 7 लोगों की तरफ से एक जानवर की कुर्बानी दी जाती है. जब लोग हज यात्रा पर जाते हैं, तो तभी हज के खर्च में ही कुर्बानी का खर्च जोडकर उनसे वो रकम वसूल कर ली जाती है. एक आदमी की कुर्बानी का खर्च भारतीय रुपये में 15 से 20 हज़ार तक होता है.
इस तरह सऊदी अरब में हज के दौरान सिर्फ बाहर से आये हज यात्रियों के लिए ही हर साल 15 से 20 लाख जानवरों की कुर्बानी दे दी जाती है, जिसमें अकेले बकरा, दुम्बा और भेंड़ जैसे छोटे जानवरों की संख्या 12 से 15 लाख तक होती है. बाकी ऊँट और गौ वंश की कुर्बानी दी जाती है.
इन देशों से आयात किये जाते हैं जानवर
हर साल सऊदी अरब सरकार हज शुरू होने के पहले भारी तादाद में अपने आसपास के देशों से बकरा, भेंड़, ऊँट और गायों को आयात करता है. इनमें सूडान, सोमालिया, थाईलैंड, ब्राज़ील, न्यूज़ीलैंड, नीदरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं. गौ वंश का आयात ज़्यादातर थाईलैंड, ब्राज़ील, न्यूज़ीलैंड और नीदरलैंड से किया जाता है. यहाँ से आने वाली गायें काफी वजनी होती है. इनमे अधिकांश वैसी गायें होती हैं, जो दूध देना बंद कर देती हैं. हर साल गौ उत्पादक देशों को सऊदी अरब में गाय निर्यात कर मोटी आमदनी होती है, जबकि गरीब अफ़्रीकी देश भेंड़ और बकरी का निर्यात कर विदेशी मुद्रा हासिल करते हैं.
कुर्बानी के बाद कहाँ जाता है लाखों टन मांस ?
कुर्बानी के नियम के तहत उसके मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा कुरबानी करने वाले का होता है, दूसरा हिस्सा उसके रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी और परिचित लोगों के बीच बांटा जाता है, जबकि तीसरा हिस्सा गरीब और वंचित लोगों में बांटा जाता है, जो कुर्बानी करने में सक्षम नहीं होते हैं. लेकिन हज यात्रा पर गए दूसरे देशों के लोग कुर्बानी का मांस ही नहीं लेते हैं. वो सिर्फ पैसे और अपना नाम दे देते हैं, और उनके नाम पर कुर्बानी कोई तीसरी सरकार अधिकृत पार्टी दे देती है. इस तरह हज यात्रियों की कुर्बानी का पूरा मांस बाख जाता है.
इस मांस को सरकार अदाही फाउंडेशन और अन्य निजी परामार्थ का काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थानों के माध्यम से गरीबों के बीच बंटवा देती है. इस मांस को दुनिया के 27 मुस्लिम आबादी वाले देशों में भेज दिया जाता है, और वहां की सरकार एवं स्वयं सेवी संस्थानों के माध्यम से इसे उन गरीब और वंचित लोगों तक पहुंचा दिया जाता है, जो कुर्बानी करने में सक्षम नहीं हैं. इन देशों में ज़्यादातर गरीब अफ़्रीकी देश शामिल हैं. हज के कुर्बानी का मांस हासिल करने वाले देशों में सोमालिया, सूडान, नाइजेरिया, चाड, मोरक्को, जिबूती, बुर्किना फासो, यमन, सीरिया, ट्यूनीशिया और फिलिस्तीन के विस्थापित लोग भी शामिल हैं.
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