नई दिल्ली: इस्लामिक सेंटर ऑफ़ इंडिया के मौलाना रशीद फरंगी महली ने रमजान के महीने में सुबह सेहरी के वक्त शोर-शराबे से बचने और पड़ोसियों का ख्याल रखने के लिए रमजान शुरू होने से पहले एक एडवाइज़री जारी की है. उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे सुबह के वक्त मुसलमानों को सहरी के लिए जगाने के लिए गैर- ज़रूरी शोर न करें. इस बात का ख्याल रखें कि आपके पड़ोसियों को आप के इस अमल से कोई तकलीफ़ न हो. ज़्यादातर मुसलमानों का मानना है कि वो इस बात को स्वीकार करते हैं और इससे इत्तेफाक रखते हैं कि सेहरी के वक़्त किसी तरह का शोर शराबा नहीं करना चाहिए.
इससे गलत मेसेज जाता है
मौलाना रशीद फरंगी के इस एडवाइज़री का ज़्यादातर मुसलमानों ने समर्थन किया है, और इसे एक अच्छा कदम बताया है, लेकिन जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक और मशहूर देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने इस एडवाइज़री पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इससे गलत मेसेज जाता है कि मुसलमान सेहरी के वक़्त शोर मचाते हैं, जबकि हकीकत ये है कि मुसलमान अपने पड़ोसियों का हमेशा ख्याल रखते आए हैं. मौलाना इसहाक़ गोरा ने कहा, "इस्लाम खुद अपने मानने वालों को पड़ोसियों के हक़ अदा करने की तालीम देता है. मुसलमान हमेशा से दूसरों की सहूलियत का ख्याल रखते आए हैं, इसलिए इस तरह की एडवाइज़री जारी करना गैर-ज़रूरी है."
ये सब शरियत से साबित नहीं है
गौरतलब है कि मौलाना खालिद रशीदी फरंगी ने सुबह जब इस तरह की एक एडवाइजरी जारी की तो लोगों ने इसे सही कदम बताया था. जमीयत उलेमा ए हिंद के मुरादाबाद सद्र और अरबी शिक्षक मौलाना हिफज़ूर रहमान कासमी ने मस्जिदों के जिम्मेदारों से अपील की कि रमजान में अपनी-अपनी मस्जिदों के लाउड स्पीकर का गलत इस्तेमाल न होने दें, और समाज के दूसरे लोगो को भी समझायें. मौलाना हिफज़ूर रहमान कासमी ने कहा, "शरीयत मे कहीं नहीं कहा गया की रमजान में सहरी के लिए शोर किए जाए. इससे दूसरे तरह की इबादत करने वालों की इबादत मे भी खलल पड़ता है. हमारे आस-पास रहने वाले दूसरे मजहब के भाइयो की नींद मे भी खलल पड़ता है." मौलाना ने कहा, " सहरी से पहले बार-बार माइक से सहरी का वक्त बताना या इस वक़्त कोई नात बजा देना शरीयत से साबित नहीं है.
पड़ोसियों का ध्यान जरूर रखना चाहिए
वहीँ, जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक और प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने कहा, " सहरी के बाद वैसे तो कोई शोर शराबा करता नहीं है. लेकिन यह बात भी गलत नहीं है कि हमें अपने पड़ोसियों का ध्यान रखना चाहिए. इस्लाम भी कहता है कि पड़ोसियों का ध्यान जरूर रखना चाहिए. ऐसे में जो शोर शराबा करते हो उन्हें भी समझना चाहिए और वह इस बात को मानते हैं. इसमें न मानने वाली कोई बात नहीं है. जब रोजा रखा जाता है और इबादत की जाती है, ऐसे में फिर किसी को परेशान करना रोजे का सबाब खत्म करने जैसे होगा.
मुस्लिम माइनॉरिटी की ऐसी ही खबरों के लिए विजिट करें https://zeenews.india.com/hindi/zeesalaam