Bettiah Muslim Voter Influence: बिहार में इस साल विधानसभा इलेक्शन होने वाले हैं और सभी सियासी पार्टियों ने ज़ोर-शोर से चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में सलाम टीवी की टीम मुस्लिम बहुल इलाकों का विश्लेषण कर रही है, ताकि यह समझा जा सके कि मुस्लिम मतदाता कहां सीधा प्रभाव डालते हैं और कहां किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं.
आज हम बात करने वाले हैं पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया विधानसभा सीट की. यह सीट ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जाता है. इस विधानसभा में मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी है. इस सीट पर अगर मुसलमान एकजुट होकर किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को वोट करें तो उसकी जीत तय कर सकते हैं.
कितने फीसद है मुसलमानों की आबादी
बेतिया विधानसभा सीट पर भाजपा, राजद और कांग्रेस, तीनों को यहां मौका मिला है. पिछली बार यहाँ से भाजपा उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. पश्चिमी चंपारण जिले की बेतिया विधानसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का दबदबा है. साल 2020 के विधानसभा इलेक्शन में यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 42,376 (14.9) फीसद थी, जो चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है. मुस्लिम समुदाय की मौजूदगी और एकता यहां के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है, खासकर तब जब विपक्षी दल मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं.
क्या किंगमेकर की भूमिका में है मुसलमान
बेतिया की राजनीति में मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि यहां यादव, ब्राह्मण, भूमिहार और वैश्य समुदाय भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं, लेकिन मुस्लिम वोटों की एकता कभी-कभी चुनाव नतीजे बदल भी सकती है. आमतौर पर कांग्रेस और राजद के समर्थक माने जाने वाले मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के खिलाफ किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है, और इसके पीछे पार्टी की महिलाओं और संगठित कार्यकर्ताओं का समर्थन है, लेकिन मुस्लिम समुदाय का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.
6 बार खिल चुका है कमल
बेतिया विधानसभा सीट पर बीजेपी 6 बार जीत चुकी है, लेकिन 1995 और 2015 में मामूली अंतर से हार गई थी. मुस्लिम मतदाता विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करके भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. साल 2015 में महागठबंधन में नीतीश और लालू की जोड़ी थी, जिसकी वजह से यादवों और मुसलमानों का वोट नहीं बिखरा और महागठबंधन उम्मीदवार मदन मोहन तिवारी जीत गए.
साल 2020 का चुनाव रिजल्ट
वहीं, साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. यानी दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ था. नतीजा यह हुआ कि 2020 के चुनाव में बीजेपी की रेणु देवी इस सीट पर जीत गईं और कांग्रेस उम्मीदवार मदन मोहन तिवारी बुरी तरह हार गए. रेणु देवी को 84,496 वोट मिला और कांग्रेस उम्मीदवार मदन मोहन तिवारी को 66,417 वोट हासिल हुए. करीब 18 हजार वोट से कांग्रेस उम्मीदवार की हार हुई.
डिप्टी सीएम रह चुकी हैं रेणु देवी
रेणु देवी चुनाव जीतकर बिहार की डिप्टी सीएम बनीं. हालांकि, उनका कार्यकाल ज़्यादा लंबा नहीं रहा. चूंकि नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़कर राजद का दामन थाम लिया. नीतीश कुमार की राजद से भी नहीं बनी और दो साल के भीतर ही नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए गठबंधन की सरकार बना ली. फिलहाल रेणु देवी नीतीश सरकार में मंत्री हैं. अब देखना होगा कि साल 2025 में इस विधानसभा सीट पर कौन सा फैक्टर काम करता है. क्या यहां फिर से कमल खिलेगा या कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा? यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा.
बेतिया राज में मुगलों का दबदबा
अगर इतिहास के नजर से देखें तो मुगल काल के बाद चंपारण क्षेत्र में बेतिया राज की शुरुआत हुई. शाहजहां के शासनकाल में उज्जैन सिंह और गज सिंह ने इस राज की शुरुआत की थी. जब मुगलों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी, तब बेतिया राज और मजबूत हुआ और इसके वैभव की खूब चर्चा होने लगी. 1763 में बेतिया के राजा धुरुम सिंह के काल में यह क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन आ गया. बाद में, जब अंतिम राजा हरेंद्र किशोर सिंह की कोई संतान नहीं हुई, तो 1897 में बेतिया राज को न्यायिक संरक्षण (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) में डाल दिया गया, जो आज तक जारी है.