Bihar Muslim Vote Bank: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सबकी नजर मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी हुई है. राज्य की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक की भूमिका काफी अहम होती है. बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसद है, जो कई जिलों में और कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. खासकर सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल के जिलों में मुस्लिम वोटों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि वहां चुनाव परिणाम अक्सर उनके वोटिंग ट्रेंड से तय होते हैं. इसी मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बिहार की राजनीति में अब नए समीकरण बन रहे हैं और इसके केंद्र में है असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM है.
बिहार के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, कटिहार और दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और पश्चिमी चंपारण के कुछ हिस्सों में मुस्लिम आबादी 30 फीसद से ज़्यादा है. सीमांचल के चार ज़िलों की कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता करीब 50 फीसद या उससे ज़्यादा हैं, इसी वजह से यह इलाका सभी पार्टियों के लिए ख़ासा अहमियत रखता है. अब तक मुसलमानों का झुकाव पारंपरिक रूप से राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों की तरफ रहा है. 2015 और 2020 में यह वोट महागठबंधन के पक्ष में एकजुट हुआ था लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के आने से अब यह समीकरण बदलता दिख रहा है.
AIMIM की एंट्री से बदला सियासी समीकरण
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की पांच सीटें जीतीं. AIMIM ने खासकर किशनगंज, जोकीहाट, बैसी, अमौर और बहादुरगंज जैसी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया. इससे साबित होता है कि पार्टी ने मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई है और राजद जैसी पार्टियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में AIMIM का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल में अपनी पकड़ फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वह खुद को मुसलमानों का एकमात्र "स्वाभाविक नेता" बता रहे हैं. यही बात महागठबंधन को परेशान कर रही है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर बिहार में विधानसभा चुनाव होते हैं और AIMIM अलग चुनाव लड़ती है, तो बिहार में RJD और कांग्रेस को कितना नुकसान होगा? और भाजपा को कितना फायदा होगा? आइए जानते हैं?
महागठबंधन को AIMIM से खतरा?
चुनाव मैदान में एआईएमआईएम की मौजूदगी से मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है. इससे राजद या कांग्रेस का मूल वोट कमजोर होता है और सीटें कम होती हैं. वहीं, AIMIM का सबसे ज़्यादा असर सीमांचल में है, जहां पहले महागठबंधन मज़बूत स्थिति में था. अब अगर मुस्लिम वोट असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और राजद के बीच बंट गए तो वहां कई सीटें भाजपा या एनडीए के खाते में जा सकती हैं. राजद और वामपंथी दल मुस्लिम-दलित और यादव एकता के आधार पर चुनाव लड़ते रहे हैं. AIMIM ज्यादा मुस्लिम मुद्दों पर बात करती है, जिससे सामाजिक गठबंधन कमज़ोर पड़ सकता है. लोकसभा सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का तर्क है कि मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता. असदुद्दीन ओवैसी की इन बातों से काफी हद तक मुस्लिम मतदाता प्रभावित भी हो जाते हैं, जिससे कई सीटों पर महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ता है.
बीजेपी कैसे फायदा उठा सकती है?
बिहार की राजनीति में AIMIM के आने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो रहा है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है. हालांकि बीजेपी के लिए मुस्लिम वोट पाना मुश्किल है, लेकिन अगर AIMIM आरजेडी को मिलने वाले वोट ले लेती है, तो बीजेपी बिना मुस्लिम वोटों के भी कई सीटें जीत सकती है. खासकर उन सीटों पर जहां महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर है. AIMIM सिर्फ़ मुस्लिम मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित करती है, जिससे बीजेपी को हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने का मौका मिलता है. इससे उसका वोट बैंक मज़बूत हो सकता है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को लेकर महागठबंधन में पहले से ही मतभेद हैं. कांग्रेस, राजद और वामपंथी दल AIMIM से दूरी बनाए रखते हैं. बीजेपी इस विरोधाभास का फ़ायदा उठाकर विपक्ष को कमज़ोर कर सकती है और सीटों का सीधा फ़ायदा उठा सकती है.
महागठबंधन को होगा भारी नुकसान
बिहार की राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले शम्स अजीज कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में AIMIM की मौजूदगी महागठबंधन के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. सीमांचल की 20 से ज़्यादा सीटों पर इसका प्रभाव चुनाव नतीजों को बदल सकता है. अगर मुस्लिम वोट बंटते हैं, तो बीजेपी को सीधा फ़ायदा हो सकता है, भले ही मुस्लिम समुदाय में उसका आधार कम हो. महागठबंधन को एआईएमआईएम को "वोट कटवा" कहकर खारिज करने के बजाय मुस्लिम समुदाय के भीतर विश्वास की एक नई जमीन तैयार करनी चाहिए. वरना, सिर्फ़ सीमांचल ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार में चुनाव नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं और बीजेपी इसका पूरा फ़ायदा उठा सकती है.