trendingNow/zeesalaam/zeesalaam02106479
Home >>Zee Salaam ख़बरें

Islamic Knowledge: दूसरों को नसीहत और खुद अमल न करने वाले का जहन्नम में होगा बुरा हाल, पढ़ें

Islamic Knowledge: इस्लाम में ऐसे शख्स को नापसंद करार दिया गया है, जिसकी कथनी और करनी में फर्क हो. अगर किसी को नसीहत दी जाए, तो उसकी फिक्र की जाए न कि उस पर रौब गाठा जाए.

Advertisement
Islamic Knowledge: दूसरों को नसीहत और खुद अमल न करने वाले का जहन्नम में होगा बुरा हाल, पढ़ें
Siraj Mahi|Updated: Feb 12, 2024, 12:00 PM IST
Share

Islamic Knowledge: अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर और होटलों पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. वह इस्लाम को फैलाने का दावा करते हैं और लोगों को कुरान और हदीस की बातें बताते हैं, इसके उलट वह इस पर अमल नहीं करते. इस्लाम में ऐसे लोगों को नापसंद फरमाया गया है. इस्लाम में कहा गया है कि अल्लाह ताला ऐसे शख्स को नापसंद फरमाता है कि कोई दूसरों को नेकी व भलाई का हुक्म दे लेकिन खुद उस पर अमल न करे. इस्लाम में कहा गया है कि लोगों को उनके कामों के लिए आगाह करना चाहिए और उनके गुनाहों के प्रचार करने के बजाए उनको सुधारने की कोशिश करनी चाहिए.

अल्लाह को नापसंद है ऐसा शख्स
अक्सर देखा जाता है कि कोई अपना करीबी शख्स सोशल मीडिया पर दूसरों को कुरान व हदीस से नसीहतें देता है. आशिक-ए-रसूल होने का दावा करता है. दूसरे मजहब के लोगों का मुखालिफ बनता है. दीनदार नजर आता है, लेकिन उसके पास कोई बाजाब्ता दीनी तालीम नहीं होती है. कई बार ऐसे लोग बेनमाजी, बेअमल, औरतों को गुनाह की दावत देने वाले, शराबी और कबीरा गुनाहों को हल्का जानने वाले होते हैं, लेकिन वह लोगों को नसीहत देते हैं. ऐसे लोगों के बारे में अल्लाह ताला ने कुरान पाक में कहा है कि "ऐ ईमान वालो! तुम वह बातें क्यों कहते हो जो तुम करते नहीं हो. अल्लाह के नजदीक बहुत सख्त नापसंदीदा बात यह है कि तुम वह बात कहो जो खुद नही करते." (कुरान: अस - सफ़, 3-2:61)

कथनी करनी हो एक
इस्लाम कहता है कि किसी भी इंसान की कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए. अगर कोई शख्स इस्लाम के बारे में बता रहा है, तो उसे खुद नेक और परहेजगार होना चाहिए. उसका किरदार ऐसा होना चाहिए कि लोग उसको देख कर उससे मुतासिर हों. अगर ऐसा होगा तो वह शख्स जिसे भी कोई अच्छी बात कहेगा वह उसे मानने के लिए तैयार हो जाएगा. 

नेक इरादा
इस्लाम कहता है कि दूसरों की इस्लाह या नसीहत ऐसी होनी चाहिए कि जैसे वह अपना भाई हो. जब भी किसी को नसीहत की जाए तो इस बात की फिक्र हो कि अगले शख्स को जहन्नम से बचाया जाए. इसके साथ लोगों को इस तरह नसीहत दे कि यह फिक्र हो कि अगला शख्स अपना भाई है और वह किसी तरह से जन्नत में जाने वाला बन जाए. ऐसा न हो कि किसी को नसीहद देने के बहाने उस पर रौब गाठे.

दूसरों को नसीहत अपने को फजीहत पर हदीस
"अल्लाह के रसूल स. ने फरमाया: एक शख्स अल्लाह के सामने कयामत के दिन लाया जाएगा और उसे जहन्नम में फेंक दिया जाएगा. उसकी आंतें बाहर निकल पड़ेंगी. वह उन्हें लिए आग में इस तरह फिरेगा जैसे गधा चक्की में घूमता है. दूसरे जहन्नमी लोग उसके इर्द-गिर्द इकट्ठे हो जाएंगे. पूछेंगे: ऐ फलां! तेरा ये क्या हाल है? तुम यहां कैसे आ गए? तुम तो हमें नेकियों का हुक्म देते थे और बुराइयों से रोकते थे. वह कहेगा: हां, मैं तुम्हें नेकी की नसीहत करता था और खुद उस पर अमल नहीं करता था. तुम्हें बुराइयों से रोकता था मगर खुद बुराइयों में पड़ा हुआ था." (हदीस: बुखारी)

Read More
{}{}