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भारत का एक ऐसा राज्य, जहां सेहरी में लोगों को उठाने के लिए बजाया जाता है ढोल, जानें पूरा मामला

Jammu and Kashmir News:  बरजुल्ला निवासी मोहम्मद शफी मीर ने कहा कि पाक महीने के दौरान ‘सहरख्वां’ की अहम भूमिका होती है. उन्होंने कहा, “रमज़ान में भी मुश्किलें होती हैं. 

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भारत का एक ऐसा राज्य, जहां सेहरी में लोगों को उठाने के लिए बजाया जाता है ढोल, जानें पूरा मामला
Zee Salaam Web Desk|Updated: Mar 09, 2025, 07:07 PM IST
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Jammu and Kashmir News: रमजान के महीने के आगाज़ के साथ ही कश्मीर के शहरों और कस्बों में ‘सहरख्वां’ भी आने लगे हैं जो ढोल बजाकर लोगों को भोर से पहले किए जाने वाले भोजन (सेहरी) के लिए जगाते हैं. दूरदराज के गांवों से आने वाले इन सैकड़ों लोगों ने मोबाइल फोन और अलार्म घड़ियों जैसे आधुनिक उपकरणों के सर्वव्यापी होने के बावजूद सदियों पुरानी परंपरा को जिंदा रखा है. ‘सहरख्वां’ ढोल बजाकर कश्मीरियों को उस भोजन के लिए जगाते हैं, जो रोज़ेदारों को दिन में ताजगी का एहसास होता है.

 बरजुल्ला निवासी मोहम्मद शफी मीर ने कहा कि पाक महीने के दौरान ‘सहरख्वां’ की अहम भूमिका होती है. उन्होंने कहा, “रमज़ान में भी मुश्किलें होती हैं. हम रात 10.30 बजे के आसपास ‘तरावीह’ (रमज़ान में पढ़ी जाने वाली लंबी नमाज़) समाप्त करते हैं और जब हम सोने जाते हैं, तब तक आधी रात हो चुकी होती है. चार घंटे बाद सेहरी और फ़ज्र (सुबह की नमाज़) के लिए फिर से उठाना थका देने वाला होता है."

हर मोहल्ले में रहते हैं इतने लोग
उन्होंने कहा कि मोबाइल या घड़ी के अलार्म की तरह, आप उनकी ढोल की थाप को बंद नहीं कर सकते. हर ‘सहरख्वां’ के पास एक या दो मोहल्ले होते हैं. कुछ लोगों के लिए यह आजीविका का स्रोत है. उनमें से कई लोग रमजान के लिए 11 महीने तक इंतजार करते हैं, क्योंकि इस महीने होने वाली कमाई से उनके परिवार का पूरे साल का खर्च चलता है. 

कुपवाड़ा में 20 साल से बजाया जा रहा है ढोल 
कुपवाड़ा जिले के कालारूस के अब्दुल मजीद खान ने कहा, ‘‘हम दूरदराज के इलाके से हैं और यही मेरी आजीविका है. मैं साल के बाकी दिनों में मजदूरी करता हूं, लेकिन उन 11 महीनों में होने वाली कमाई रमजान के दौरान होने वाली कमाई से भी कम है.’’ खान 20 सालों से रमजान के महीने में ढोल बजाकर लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनका काम सुबह तीन बजे शुरू होता है और पांच बजे समाप्त होता है. खान ने कहा, ‘‘रमज़ान के अंत में लोग हमें उदारतापूर्वक दान देते हैं.’’ 

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