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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान, कहा-"सांप्रदायिकता-अशांति... लगाम"

 Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट में 12 दिसंबर को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को आदेश दिया है कि जब तक अगला आदेश न हो, किसी भी इबादतगाह (मस्जिद, मंदिर, दरगाह) के खिलाफ नया मामला दर्ज नहीं किया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान, कहा-"सांप्रदायिकता-अशांति... लगाम"
Md Amjad Shoab|Updated: Dec 12, 2024, 11:21 PM IST
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Places of Worship Act: भारतीय मुसलमानों की सबसे बड़ी तंजीम जमीयत उलेमा-ए-हिंद के पूर्व अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ( Maulana Arshad Madani ) ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट ( Places of Worship Act ) को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इस्तकबाल किया है. मौलाना मदनी ने कहा कि अदालत के इस आदेश से मुल्क में अशांति फैलाने वालों पर लगाम लगेगी.

दरअसल, 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को आदेश दिया है कि जब तक अगला आदेश न हो, किसी भी इबादतगाह (मस्जिद, मंदिर, दरगाह) के खिलाफ नया मामला दर्ज नहीं किया जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि लंबित मामलों में भी कोई सर्वे या ऐसा अंतरिम आदेश नहीं दिया जाए, जिससे पूजा स्थल की स्थिति प्रभावित हो.

जमीअत उलमा-ए-हिंद ( Jamiat Ulema-i-Hind ) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ( Maulana Mahmood Madani ) और अन्य की याचिका पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ( Justice Sanjiv Khanna ), न्यायमूर्ति संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच ने यह आदेश दिया. अदालत के इस आदेश पर मौलाना अरशद मदनी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इसे बड़ा फैसला बताया. उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि इससे मुल्क में सांप्रदायिकता और अशांति फैलाने वालों पर लगाम लगेगी.

जमीअत उलमा-ए-हिंद की तरफ से एडवोकेट दुष्यंत दवे और अन्य वकील कोर्ट में मौजूद थे. दवे ने सभी लंबित मामलों को कैंसिल करने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया. कोर्ट ने केंद्र (संघीय सरकार) को निर्देश दिया कि वह पूजा स्थल संरक्षण से संबंधित कानून पर दायर याचिकाओं के खिलाफ चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करे.

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने की ये मांग
इस मामले की मूल याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ के शीर्षक से 2020 में दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र को नोटिस जारी किया था, लेकिन बाद में इस एक्ट को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाएं भी दायर की गईं. आज की सुनवाई में, जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से भी एक रिट याचिका दर्ज की गई, जिसमें 1991 के एक्ट को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग की गई थी.

इन दलों ने कानून की रक्षा के लिए दायर की याचिकाएं 
इसके अलावा कई सियासी दलों ने इस कानून की रक्षा के लिए हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें सीपीआई (एम), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, डीएमके, राजद सांसद मनोज झा और एनसीपी (शरद पवार) के सांसद जीतेन्द्र ओहाड़ शामिल हैं.

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