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इस्लाम में ठहाके लगाकर हंसना है मना; इस तरह हंसना है बेहतर

Islamic Knowledge: इस्लाम में शांत रहने के बारे में बताया गया है. हदीसों में है कि प्रोफेट मोहम्मद स. मुस्कराते थे. लोगों से कभी-कभी हंसी मजाक और दिल्लगी की बातें कर लिया करते थे.

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इस्लाम में ठहाके लगाकर हंसना है मना; इस तरह हंसना है बेहतर
Siraj Mahi|Updated: Feb 29, 2024, 09:42 AM IST
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Islamic Knowledge: आज हमारे मुआशरे में अक्सर देखने को मिल जाता है कि लोग चिंता में रहते हैं. कोई अपने काम को लेकर, पढ़ाई को लेकर, मुस्तकबिल को लेकर या रिश्तेदारों को लेकर. कई बार अपनी चिंताओं में इतना खोए रहते हैं कि वह अकसर गुस्से में रहते हैं. कई बार अपना गुस्सा दूसरों पर उतार देते हैं जिससे माशरे में लड़ई झगड़े हो जाते हैं. लेकिन इस्लाम ने इन बातों से मना किया है. इस्लाम हमें शांति से रहने की हिदायत देता है.

मुस्कराना बेहतर
इस्लाम में खुश रहने के बारे में बताया गया है. इस्लाम में जिक्र है कि प्रोफेट मोहम्मद स. लोगों से सादगी से मिलते थे. वह कई मौकों पर लोगों हंसी मजाक भी कर लिया करते थे. लोगों से हंसी दिल्लगी की बातें कर लिया करते थे. इस्लाम में इस बात की भी ताकीद की गई है कि आप बहुत जोर से न हंसें. इस्लाम कहता है कि ज्यादा जोर से हंसने से दिल मुर्दा हो जाता है. इस्लाम में मुस्कराने को बेहतर बताया गया है.

नबी स. करते थे मजाक
हदीस 'मिश्कात' में जिक्र है कि "एक बार एक देहाती बाजार में कुछ बेच रहा था. उस देहाती को प्रोफेट मोहम्मद स. ने पीछे से अपनी गोद में ले लिया. वे नबी स. को देख नहीं पा रहे थे. उन्होंने कहा: कौन है? मुझे छोड़ दो. जब मुड़कर देखा कि पीछे नबी स. हैं तो पूरी कोशिश करने लगे कि अपनी पीठ को नबी स. के सीने से चिमटाए रहें. इस मौके पर नबी स. ने फरमाया: कौन खरीदता है इस गुलाम को! (वे गुलाम तो न थे मगर रंग काला था, हबशी गुलामों की तरह दिखते थे.) जाहिर ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! आप बहुत घाटे में रहेंगे. भला मुझे कौन खरीदेगा और जो खरीदेगा वह बहुत थोड़ी कीमत देगा. आप स. ने कहा: दुनिया की नजर में अगर कम कीमत वाले हो तो क्या हुआ? अल्लाह के यहां तुम्हारी बड़ी कीमत है."

हंसी दिल्लगी पर हदीस
"हजरत अबु हुरैरा रजि. कहते हैं कि लोगों ने ताज्जुब और हैरत से कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! आप हमसे हंसी दिल्ललगी की बातें करते हैं? आप स. ने कहा: हां, लेकिन कोई गलत और झूठी बात नहीं कहना." (हदीस: तिरमिजी)

हंसने पर हदीस
"हजरत आइशा रजि. कहती हैं कि मैंने नबी स. को कभी इस तरह हंसते नहीं देखा कि आप स. के तालू दिखाई पड़ें, आप स. तो केवल मुस्कराते थे." (ठट्ठा मारकर नहीं हंसते थे.) (हदीस: बुखारी, मुस्लिम)

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