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मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस की बर्बादी की बताई वजह; बोले- 2012 में हुई थी ये बड़ी गलती

Mani Shankar Aiyar Book: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर की एक किताब ने कांग्रेस में हलचल मचा दी है. उनकी किताब में इस बात का जिक्र किया गया है कि 2012 में प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और डॉ. मनमोहन सिंह को भारत का राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था. अगर ऐसा होता तो कांग्रेस की हालत इतनी खराब नहीं होती. 

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मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस की बर्बादी की बताई वजह; बोले- 2012 में हुई थी ये बड़ी गलती
MD Altaf Ali|Updated: Dec 15, 2024, 03:00 PM IST
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Mani Shankar Aiyar Statement on Congress: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नयी पुस्तक में कहा है कि 2012 में जब राष्ट्रपति पद की जगह खाली हुई थी. तब प्रणब मुखर्जी को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था. 83 साल के अय्यर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "यदि उस समय ऐसा किया गया होता तो संप्रग सरकार "शासन के पंगु बनने" की स्थिति में नहीं पहुंचती. उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के फैसले ने संप्रग के तीसरी बार सरकार गठित करने की संभावनाओं को खत्म कर दिया.

अय्यर का राजनीतिक सफर 
अय्यर ने अपनी पुस्तक 'ए मैवरिक इन पॉलिटिक्स' में ये विचार रखे हैं. इस पुस्तक को 'जगरनॉट' ने प्रकाशित किया है. पुस्तक में अय्यर ने राजनीति में अपने शुरुआती दिनों, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के शासनकाल, संप्रग-एक में मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल, राज्यसभा में अपने कार्यकाल और फिर अपनी स्थिति में गिरावट, परिदृश्य से बाहर होने पतन" का जिक्र किया है. 

अगर मनमोहन सिंह राष्ट्रपति होते
अय्यर ने लिखा, कि "2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कई बार 'कोरोनरी बाइपास सर्जरी' करानी पड़ी. वह शारीरिक रूप से कभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए. इससे उनके काम करने की गति धीमी हो गई और इसका असर शासन पर भी पड़ा. जब प्रधानमंत्री का स्वास्थ्य खराब हुआ, लगभग उसी समय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बीमार पड़ी थीं, लेकिन पार्टी ने उनके स्वास्थ्य के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की" उन्होंने कहा कि जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि दोनों कार्यालयों- प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष में गतिहीनता थी, शासन का अभाव था जबकि कई संकटों, विशेषकर अन्ना हजारे के 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन से या तो प्रभावी ढंग से निपटा नहीं गया या फिर उनसे निपटा ही नहीं गया. 

प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी
उन्होंने लिखा, "व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि जब 2012 में राष्ट्रपति पद खाली हुआ था तो प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और डॉ. मनमोहन सिंह को भारत का राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था." अय्यर ने कहा, "प्रणब के संस्मरणों से पता चलता है कि वास्तव में इस पर विचार किया गया था." अय्यर ने कहा, "किन्हीं कारणों से, जिनकी जानकारी न तो मुझे और न ही संभवत: किसी और को थी. फिर भी डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति के रूप में ऊपर भेजने का निर्णय लिया गया." 

कांग्रेस 2014 में इतनी बुरी तरह से नहीं हारती...अगर
उन्होंने मुखर्जी को 2012 में प्रधानमंत्री बनाए जाने के अपने विचार को लेकर 'पीटीआई' से कहा, "मुझे लगता है कि अगर डॉ. मनमोहन सिंह राष्ट्रपति और प्रणब प्रधानमंत्री बन गए होते, तो भी हमें 2014 में हार का सामना करना पड़ता लेकिन यह हार इतनी अपमानजनक नहीं होती कि हम मात्र 44 सीट पर सिमट जाते." उन्होंने कहा कि 2013 में हर कोई बीमारी से उबर रहा था और इसलिए हमारे खिलाफ कई आरोप लगाए गए जो अदालत में कभी साबित नहीं हुए थे. अय्यर ने अपनी किताब में कहा कि सरकार और पार्टी की ऐसी विश्वसनीयता नहीं रह सकी कि वे मामलों को स्पष्ट रूप से सनसनीखेज तरीके से दिखाने के भूखे मीडिया के आरोपों का जवाब दे सकें और उन्होंने सोचा कि संबंधित मंत्रियों के इस्तीफे से मुद्दों को खत्म किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इससे कुछ भी हल नहीं निकला और अप्रमाणित आरोपों ने सरकार की प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुंचाया.  

 

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