Mumbai News: ईरान को आज एक ईस्लामिक देश है, लेकिन यह पहले से ऐसा नहीं था, वहां राजतंत्र था. साल 1979 में आयतुल्लाह रुहुल्लाह मूसावी के नेतृत्व में ईरान में एक इस्लामिक क्रांति हुई, जिसका नतिजा यह हुआ कि शाह रजा पहलवी की सत्ता खत्म हो गई और वहां पर एक इस्लामिक व्यवस्था को स्थापित किया गया. आज ईरान एक इस्लामिक गणराज्य है, और आयतुल्लाह रुहुल्लाह मुसावी को इसके संस्थापक माना जाता है. रुहुल्लाह मुसावी को शिया समुदाय में एक बड़े धार्मिक व्यक्तित्व के तौर पर याद किया जाता है. उनकी 36वी पुण्यतिथि के अवसर पर आज भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में "याद-ए-इमाम-ए-रहील" के नाम से एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें उनके जिवन और ईरान में इस्लामिक क्रांति पर चर्चा की गई.
मुंबई में आयोजित इस प्रोग्राम में भारी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया, महिलाए, बच्चे, मर्द और बुजूर्ग हर वर्ग के लोग इस आयोजन में शामिल हुए. यह प्रोग्राम मुंबई के ऐतिहासिक केसरी बाग में रखा गया था. इस अवसर पर कई सम्मानित उलेमा ने इमाम खोमैनी की बहुआयामी शख्सियत के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा किए. इन वक्ताओं में मौलाना हैदर अब्बास, मौलाना सैयद मोहम्मद असकरी, मौलाना हुसैन मेहदी हुसैनी और मौलाना हसनैन रिज़वी करारवी शामिल थे. वक्ताओं ने इमाम खोमैनी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया जैसे कि अन्याय के खिलाफ उनका अडिग रुख, क़ुरआन और अहलुल बैत की शिक्षाओं के प्रति उनकी गहरी निष्ठा, और मुस्लिम एकता व आत्मनिर्भरता का उनका विज़न.
वक्ताओं ने यह भी ज़ोर दिया कि आज के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में भी इमाम खोमैनी की सोच कितनी प्रासंगिक है. उन्होंने श्रोताओं से आह्वान किया कि वे अत्याचार के विरुद्ध प्रतिरोध और नेतृत्व में नैतिकता के उनके संदेश को आत्मसात करें.
इमाम के संघर्षों को एक वीडियो के माध्यम से दिखाया गया
कार्यक्रम को और गहराई दी एक ऑडियो-विज़ुअल प्रस्तुति ने, जिसमें इमाम खोमैनी के जीवन यात्रा को दर्शाया गया. उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर पहलवी शासन के खिलाफ संघर्ष, 1979 की ईरानी क्रांति, और वैश्विक इस्लामी जागरूकता पर उनके गहन प्रभाव तक। यह प्रस्तुति उन ऐतिहासिक क्षणों की झलक बन गई, जिन्होंने मुस्लिम दुनिया के राजनीतिक और आध्यात्मिक परिदृश्य को नई दिशा दी.
कार्यक्रम का खातमा दुआओं और इस वादे के साथ हुआ कि इमाम खोमैनी द्वारा स्थापित मूल्यों को जीवन में अपनाया जाएगा. कार्यक्रम की उत्तम व्यवस्था, भारी उपस्थिति और भावपूर्ण श्रद्धांजलियों ने इस बात का सबूत है इमाम खोमैनी की विरासत आज, तीन दशकों से ज्यादा वक्त बाद भी, जिंदा और प्रेरणादायक बनी हुई है.